नैणा नाथ न निरखियौ,
परणी खांडै साथ |
बलती झाला वा रमी ,
रगड़े हन्दी रात ||४६||
उस वीरांगना ने अपनी आँखों से
पति के कभी दर्शन नहीं किये ,क्योंकि विवाह के अवसर पर
उसका पति युद्ध-क्षेत्र में चला गया था ,अत: पति की तलवार के साथ ही
उसका विवाह हुआ था | युद्ध क्षेत्र में पति की वीर-गति का समाचार आने पर वही
पत्नी,जिसके हाथों से हल्दी का रंग भी नहीं मिटा था ,अपने आप को अग्नि के समर्पित
कर सती हो जाती है |
संग बल्तां लाड़ी बणे,
मांगल राग नकीब |
रण ठाडो लाडो सजै,
इण घर रीत अजीब ||४७||
चिता पर अपने वीर पति के शव के साथ सहगमन करते समय यहाँ की महिलाऐं दुल्हन का
वेश धारण करती है व वीर युद्ध के लिए प्रस्थान हेतु दुल्हे का सा केसरिया वेश धारण
करते है | इन दोनों अवसरों पर ही मंगल राग वाध्यों द्वारा बजाई जाती
है | इस वीर भूमि का यही रिवाज है |
घर व्हाली धण सूं घणी,
धर चूमै पड़ खेत |
रगतां रंगे ओढ़णी,
रगतां बाँदै रेत ||४८||
वीरों की धरती अपनी पत्नी से भी अधिक प्यारी है | इसीलिए धराशायी होने पर वे
धरती को ही चूमते है तथा अपने रक्त से उसकी मिटटी रूपी चुन्दडी को रंगते है व अपने
रक्त रंजित शरीर के साथ मिट्टी को लपेट कर स्वर्ग में साथ ले जाते है |
भड पडियो रण-खेत में,
संचै पूँजी साथ |
राज सांधे निज रगत सूं,
पिण्ड- दान निज हाथ ||49||
वीर-योद्धा रण-क्षेत्र में धराशायी हो गया,किन्तु सत्य की संचित
सम्पत्ति फिर भी उसके साथ है | इसीलिए किसी दुसरे को उसका
पिंडदान कराने की आवश्यकता नहीं है | वह स्वयम ही अपने रक्त से
भीगी हुई मिट्टी के पिण्ड बनाकर अपने ही हाथ से अपने लिए पिंडदान करता है |
(इतिहास में खंडेला के राजा केसरीसिंह द्वारा रण-भूमि में अपने रक्त से अपना
पिंडदान करने का उदहारण मौजूद है राजा केसरीसिंह पर ज्यादा जानकारी जल्द ज्ञान
दर्पण पर प्रस्तुत की जाएगी)
पग-पग तीरथ इण धरा ,
पग- पग संत समाध |
पग- पग देवल देहरा ,
रमता जोगी साध ||५०||
इस धरती पर स्थान-स्थान पर तीर्थ है,स्थान -स्थान पर
संत-महात्माओं की समाधियाँ है ,स्थान-स्थान पर देवल और
देवालय है तथा स्थान-स्थान पर यहाँ योगी और साधू महात्मा विचरण करते है |
कर भालो,करवाल कटि,
अदृस हय असवार |
इण धरती रै उपरै,
लड़ता नित जुंझार ||५१||
हाथ में भाला और कमर में तलवार बाँध कर तथा अश्व पर सवार होकर अदृश्य जुंझार
इस धरती पर हमेशा लड़ते थे (युद्धरत रहते थे)
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