उलझी टापां आंतड़यां,
भालां बिन्धयो गात |
भाकर रो भोम्यों करै,
डाढ़ा घोडां घात ||२२७||
घोड़े पर सवार शिकारी जंगल में सूअर पर प्रहार
करता है -भाले से सूअर का शरीर बिंध गया है | घायल
सूअर पर शिकारी के घोड़े के पैर जाकर गिरने से उसकी आंतडियां प्रभावित हुई है पर
फिर भी पहाड़ का भोमिया सूअर निरुत्साहित नहीं हुआ व् अपने मुख से घोड़े के शरीर को
काट कर आघात करता है |
मगरो छोडूं हूँ नहीं ,
भुंडण मत बिलमाय |
सेलां टकरां झेलसूं,
भाग्यां बंस लजाय ||२२८||
हे भुंडण (सुअरी) मुझे फुसलाने की कोशिश मत कर
मैं इस पहाड़ी क्षेत्र को हरगिज नहीं छोडूंगा | मैं
यहीं रहकर शिकारियों के सेलों की टक्कर झेलूँगा क्योंकि भागने से मेरा वंश लज्जित
होता है |
चीतल काला छींकला,
गरण गरण गरणाय |
जान, सिकारी
लुट लै,
नैणा नार चुराय ||२२९||
काले धब्बों वाला चीतल अपनी ही मस्ती में मस्त
रहता है | शिकारी अकारण ही उसके प्राण-हरण कर
लेता है किन्तु उसकी सुन्दर आँखों को तो नारी ने पहले ही चुरा लिया है |
सुरबाला पूछै सदा ,
अचरज करै सुरेस |
पसु पंखी,किम
मानवी,
इण धर रूप विसेस ||२३०||
राजस्थान की इस धरती के पशु पक्षी व मानव इतने
सुन्दर है कि देवांगनाएँ भी आश्चर्य चकित हो इंद्र से पूछती है कि इन्हें ऐसा रूप
कहाँ से मिला ? |
संत तपस्या,सती
झलां,
सूरा तेज हमेस |
तीनों तप भेला जठै,
गरमी क्यूं न बिसेस ||२३१||
संतो की तपस्या,सतियों
के जौहर की ज्वाला तथा शूरवीरों का तेज यहाँ हमेशा बना रहा है | ये तीनों तप जहाँ इक्कठा हो ,वहां भला विशेष गर्मी क्यों न हों |(यही कारण है कि राजस्थान में गर्मी अधिक पड़ती
है)|
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