रण छकियो, छकियो नहीं ,
मदिरा पान विशेष |
रण-मद छकियो रीझ सूं,
रण-मतवालो देस ||२२||
रण से तृप्त होने वाला यह देश
अत्यधिक मदिरा पान करने पर भी तृप्त नहीं हो सका किन्तु जब उसने उल्लासित होकर
रण-रूपी मदिरा का सेवन किया ,तभी जाकर तृप्त हुआ क्योंकि
यह सदैव ही रण-रूपी मदिरा से मस्त होने वाला है |
सह देसां सूरा हुआ,
लड़िया जोर हमेस |
सिर कटियाँ लड़णों सखी,
इण धर रीत विसेस ||२३||
हे सखी ! सभी देशों में शूरवीर हुए है ,जो सदैव बड़ी वीरता से लड़े है,किन्तु सिर कटने के उपरान्त
भी युद्ध करना तो केवल इस देश की ही विशेष परम्परा रही है |
खाणी रोटी घास री,
पेडा गालां बास |
रगतां लिखियो अमिट नित,
इण धरती इतिहास ||२४||
घास की रोटी खाने वाले, पेडों के नीचे और् कन्दराओं
मे निवास करने वाले वीरों ने सदैव ही इस धरती के इतिहास को रक्त से अमिट अक्षरों
मे लिखा है |
धर कागज,खग लेखणी,
रगतां स्याही खास |
कमधां लिखियो कोड सूं,
अमिट धरा इतिहास ||२५||
धरती रुपी कागज पर तलवार रुपी लेखनी से रक्त की विषेश स्याही से कमधों (सिर
कटने के बाद भी लडने वाले वीरों) ने बडे चाव से इस भूमि का अमिट इतिहास लिखा है |
धोरां घाट्यां ताल रो,
आंटीलो इतिहास |
गांव गांव थरमापली,
घर घर ल्यूनीडास ||२६||
यहां के रेतिले टीलों,यहां की घाटियों और मैदानों
का बडा ही गर्व पुरित इतिहास रहा है |यहां का प्रत्येक गांव
थरमापल्ली जैसी प्रचण्ड युद्ध स्थली है तथा प्रत्येक घर मे ल्यूनीडास जैसा प्रचण्ड
योद्धा जन्म चुका है |
सुलग अगन सुजसां तणी,
सुलगै नित रण-आग |
सदियां सूं देखां सखी ,
सिर अनामी कर खाग ||२७||
यहां के वीरों के ह्रदय मे सदैव सुयश कमाने की अग्नि प्रज्वलित रहती है
इसिलिये यहां सदा युद्धाग्नि प्रज्वलित रहती है | हे सखी ! हम तो सदियों से यही
देखती आई है कि यहां के वीरों के सिर सदा अनमी (न झुकने वाले)रहे है ,तथा उनके हाथों मे खड्ग शोभित
रहा है |
No comments:
Post a Comment