सुत गोदी ले धण
खड़ी,
जौहर झालां जोर |
झालां हिड़दे धव
जलै,
लाली नैणा कोर ||
जौहर के समय वीर
नारी अपने पुत्र को लिए जौहर की प्रचंड ज्वाला में कूदने हेतु खड़ी है | उधर उसके वीर पति
के हृदय में भी वीरत्व की ज्वाला धधक रही है तथा उसकी आँखों की कोरों में रोष की
लालिमा लहक रही है |
दस सर कटतां ढह
पड्यो,
धड़ नह लड़ियो धूत
|
सिर इक कटियाँ रण
रच्यो,
रंग घणा रजपूत ||
दसशीश रावण सिर
कटते ही ढह पड़ा | उसका धड़ युद्ध में नहीं लड़ सका |
धन्य है वह राजपूत वीर जो
एक सिर के कट जाने के बाद भी युद्ध करते रहते है |
बांको सुत लंकेस
रो,
सुरपत बाँधण हार |
सिर कटियाँ फिर
नह हिल्यो,
रण उठ कियो न वार
||
लंकापति रावण का
वीर पुत्र मेघनाथ जिसने देवताओं के राजा इंद्र को भी बंदी लिया था | सिर कटने के बाद
वह न तो हिल सका और न ही उठकर वार कर सका |
सिर देवै पर
कारणे,
सिर झेलै पर तांण
|
बीतां बातां
गीतड़ा,
बढ़ बढ़ करै बखाण ||
यहाँ के शूरवीरों
को धन्य है जो परकाज हित अपना मस्तक कटा देते है तथा दुसरे के संकट को अपने सिर पर
झेल लेते है | कवियों के गीतों व लोककथाओं में ऐसे शूरवीरों की कीर्ति का बढ़-बढ़ कर बखान किया
जाता है |
रजवट खूंटो
नीमणों,
टूटे नांह हिलंत |
विध बांधी बल-बरत
सूं ,
वसुधा देख डिगन्त
||
रजवट
(क्षत्रियत्व) वह मजबूत खूंटा है जो न तो हिल सकता है ,न टूट सकता है | इसीलिए विधाता ने इस विचलित होती हुई पृथ्वी को
शक्ति की रज्जू (रस्सी) से रजवट के खूंटे से बाँधा है (क्षत्रिय के शासक होने का
यही सिद्धांत है)|
सुरावण सकती सकड़,
मेटे विधना मांड |
देय हथेली थाम दे
,
डगमगतौ
ब्रह्माण्ड ||
शौर्य में इतनी
सामर्थ्य है कि वह विधाता के लेख को भी मिटा सकता है | वह डगमगाते ब्रह्मांड को भी अपनी हथेली लगाकर
रोक सकता है |
No comments:
Post a Comment