लोपण पहलां पाल पर,
कोपण पहलां पेख |
रोपण चाल्यो आज थूं ,
मणधर माथै मेख ||१८४||
हे वीर ! तू शत्रु-सेना को देखने से पहले ही
क्रुद्ध हो उसे सीमा प्रवेश करने से पूर्व ही ध्वंस करने के चल पड़ | इस प्रकार तू निश्चय ही मणिधर सर्प (शत्रु) के
माथे पर (अपने शौर्य या विजय की) मेख रोपने जा रहा है |
जालै झाला, बिस
जबर,
किण विध आवै हाथ ?
बल बिन चाल्यो बावला,
नागां घालण नाथ ||१८५||
जला देने वाली लपटें व भयंकर विषधारी सर्प को
किस प्रकार पकड़ा जा सकता है ? हे पागल ! तू
बिना बल संचय किए ही सांपो को पकड़ने के लिए चल पड़ा है |
दुबकै, भभकै
,फिर डसै,
बंबी पड़ीयां तांण |
हथ देतां जांणी नहीं,
भुजंग री आ बांण ||१८६||
उपरोक्त दोहे के प्रसंग में कहा गया है कि तू
बांबी में हाथ डाल रहा है क्या तू सर्प की आदत नहीं जानता | बांबी पर जब आंच आती है तो विषधर पहले कुछ
दुबकता है ,फिर फुफकारता है तथा अंत में डस लेता
है |
दुसमण ! सुण ले सोचलै,
इण धरती मत झाँख |
खुड्को होतां सिव-धरा,
खुल जासी सिव-आँख |१८७||
हे दुश्मन ! तुम भली भाँती सोचलो और सुनलो | इस धरती की और कभी आँख मत उठाना | यह भूमि भगवान शंकर द्वारा रक्षित है | तुम्हारे आगमन की आहट पाते ही यहाँ शिव का
तीसरा नेत्र खुल जायेगा अर्थात यहाँ के वीर प्रलयंकारी आक्रमण करके तुम्हे क्षण भर
में ही नष्ट कर देंगे |
झगड़ा टणकी जातियां,
जीवै सदा जहान |
झगड़ो जीवण जगत रो,
विध रो अटल विधान ||१८८||
युद्ध करने वाली वीर जातियां इस संसार में
हमेशा जीवित रहती है | संघर्ष ही जीवन
है यह जगत का अटल विधान है |
जी सी वाही जातड़ी,
लड़सी झाड़ो झाड़ |
लडै पडै ,पड़
पड़ लडै,
पटकै अंत पछाड़ ||१८९||
संसार में वही जाति जीवित रहेगी जो कदम कदम पर
संघर्ष करने को उधत है | जो जाति युद्ध
करती है, पराजित होने पर फिर उठ खड़ी होती है , फिर लडती है व अंत में शत्रु पर विजय प्राप्त
करती है , वही दीर्घकाल तक जीवित रह सकती है |
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