Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान -59


आंधी जठे उतावली,
पाणी कोसां दूर |
उण धर सांठा नीपजै,
जल जीवां भरपूर ||३५२||


जिस मरू-प्रदेश में प्रचंड आंधियां आती है तथा पानी भी कोसों दूर मिलता है , वहां की धरती पर गन्ने भी उत्पन्न होते है तथा जल-जीवों की भी कमी नहीं है | अर्थात यह धरती ऊसर ही नहीं, उर्वरा भी है |

डरता माणस जावता ,
चोरां रो नित बास |
वो धर आज बसावणो,
पास पास रहवास ||३५३||


जहाँ कभी चोरों की बस्ती थी उस क्षेत्र में लोग जाने से भी डरते थे, वहीँ पर अब घनी आबादी हो गयी है |

विधन बणाई जिण धरा,
रेतीली जल हीन |
काया बदली काम सूं,
माणस हाथ प्रवीण ||३५४||


विधाता णे जिस धरती को रेतीली बिना जल वाली बनाया, उसे ही मनुष्य णे अपने परिश्रम से उर्वर बनाकर उसकी काया पलट कर दी |

बादल भेजै बरसवा,
नभ-मारग गिर राज |
नहरां आतां इण धरा,
सीधो मारग आज ||३५५||


गिरिराज हिमालय आकाश मार्ग से बादल जल बरसाने हेतु भेजता है | परन्तु नहरें आने से इस धरती पर (जल प्रवाह से) सीधा मार्ग बन गया है |

अन्न धन होसी मोकलो,
चुल्हां बलसी आग |
बंध बणतां जागियौ,
सदियाँ सोयो भाग ||३५६||


इस धरती पर अब प्रचुर अन्न धन्न पैदा होगा | जिससे हर घर में चूल्हे जलने लगेंगे | बाँध बनने के साथ मानो इस मरुधरा का सदियों से सोया भाग्य जाग उठा है | अर्थात अब यहाँ सुख-समृधि विलसने लगेगी |

बंधा नहरां बीजल्यां,
घर घर विद्या-दान |
इण विध आगे आवियो,
नूतन राजस्थान ||३५७||


बाँध,नहरें,विद्युत तथा शिक्षा का आगमन हो गया है | इस तरह से अब एक नया ही राजस्थान हमारे सामने गया है |

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