आंधी जठे उतावली,
पाणी कोसां दूर |
उण धर सांठा नीपजै,
जल जीवां भरपूर ||३५२||
पाणी कोसां दूर |
उण धर सांठा नीपजै,
जल जीवां भरपूर ||३५२||
जिस मरू-प्रदेश में प्रचंड आंधियां आती है तथा पानी भी कोसों दूर मिलता है , वहां की धरती पर गन्ने भी उत्पन्न होते है तथा जल-जीवों की भी कमी नहीं है | अर्थात यह धरती ऊसर ही नहीं, उर्वरा भी है |
डरता माणस जावता ,
चोरां रो नित बास |
वो धर आज बसावणो,
पास पास रहवास ||३५३||
चोरां रो नित बास |
वो धर आज बसावणो,
पास पास रहवास ||३५३||
जहाँ कभी चोरों की बस्ती थी उस क्षेत्र में लोग जाने से भी डरते थे, वहीँ पर अब घनी आबादी हो गयी है |
विधन बणाई जिण धरा,
रेतीली जल हीन |
काया बदली काम सूं,
माणस हाथ प्रवीण ||३५४||
रेतीली जल हीन |
काया बदली काम सूं,
माणस हाथ प्रवीण ||३५४||
विधाता णे जिस धरती को रेतीली व बिना जल वाली बनाया, उसे ही मनुष्य णे अपने परिश्रम से उर्वर बनाकर उसकी काया पलट कर दी |
बादल भेजै बरसवा,
नभ-मारग गिर राज |
नहरां आतां इण धरा,
सीधो मारग आज ||३५५||
नभ-मारग गिर राज |
नहरां आतां इण धरा,
सीधो मारग आज ||३५५||
गिरिराज हिमालय आकाश मार्ग से बादल जल बरसाने हेतु भेजता है | परन्तु नहरें आने से इस धरती पर (जल प्रवाह से) सीधा मार्ग बन गया है |
अन्न धन होसी मोकलो,
चुल्हां बलसी आग |
बंध बणतां जागियौ,
सदियाँ सोयो भाग ||३५६||
चुल्हां बलसी आग |
बंध बणतां जागियौ,
सदियाँ सोयो भाग ||३५६||
इस धरती पर अब प्रचुर अन्न धन्न पैदा होगा | जिससे हर घर में चूल्हे जलने लगेंगे | बाँध बनने के साथ मानो इस मरुधरा का सदियों से सोया भाग्य जाग उठा है | अर्थात अब यहाँ सुख-समृधि विलसने लगेगी |
बंधा नहरां बीजल्यां,
घर घर विद्या-दान |
इण विध आगे आवियो,
नूतन राजस्थान ||३५७||
घर घर विद्या-दान |
इण विध आगे आवियो,
नूतन राजस्थान ||३५७||
बाँध,नहरें,विद्युत तथा शिक्षा का आगमन हो गया है | इस तरह से अब एक नया ही राजस्थान हमारे सामने आ गया है |
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