रण तज घव चांटो करै,
झेली झाटी एम ||
डाटी दे , धण
सिर दियो,
काटी बेडी प्रेम ||१४२||
कायर पति रण-क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ | इस पर उसकी वीर पत्नी ने उसे घर में न घुसने
देने के लिए किवाड़ बंद कर दिए तथा पहले तो पति को कायरता के लिए धिक्कारा व बाद
में अपना सिर काट कर पति को दे दिया | इस
प्रकार उस कायर पति के साथ जो प्रेम की बेड़ियाँ पड़ी हुई थी उनको उस वीरांगना ने
हमेशा के लिए काट दिया |
रण लाडो बण भड खडो,
सह गण भेज्या ईस |
रिपु धण भेजी राखडी,
निज धण भेज्यो सीस ||१४३||
युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए शूरवीर दुल्हे
के समान सज कर खड़ा हुआ है | भगवान शिव ने
अपने समस्त गणों को उसका युद्ध कौशल देखने के लिए भेजा | शत्रु
की पत्नी ने उसे मोह पाश में फंसाने के उद्देश्य से मंगल सूत्र भेजा | और उसकी खुद की पत्नी ने पति को मोह पाश से
मुक्त करने के लिए अपना सिर काट कर पति के पास के भिजवा दिया |
काटण मारग अरि कटक,
खाटक खडियो खेंट |
हाटक थालां रींझ धण,
भेज्यो माथो भेंट ||१४४||
शत्रु की सेना को अपनी तलवार से चीरते हुए उस
वीर ने उसी के बीच अपना मार्ग बना लिया | उसकी
इस अदभुत वीरता पर रींझकर वीरांगना (पत्नी) ने अपना मस्तक काटकर सोने के थाल में
उसके पास भेंट स्वरुप भेज दिया |
बाँधी पाल कुल काण री,
प्रण बांध्यो ,मन
टीस |
सिर बांध्यो जस सेहरो,
उर बंध्यो धण सीस ||१४५||
शूरवीर कुल मर्यादा की परम्परा को रक्षित कर
ऐसे शोभायमान हो रहा था जैसे सिर पर सेहरा बाँध रखा हो | कर्तव्य
पालन के लिए हृदय में उत्पन्न होने वाली पीड़ा व उसकी दृढ प्रतिज्ञा ऐसे शोभायमान
हो रही थी जैसे उसने अपनी पत्नी के काट कर दिए हुए मस्तक को बाँध कर हृदय पर लटका
लिया हो |
मुण्ड कट्यां भी रुण्ड लडै,
खग बावै कर रीस |
मग्ग दिखावै मोड़ सूँ,
उर बंधियो धण-सीस ||१४६||
मस्तक कट जाने के बाद भी उस वीर का कबंध
क्रुद्ध होकर तलवार बजा रहा है | उसकी वीर पत्नी
का कटा हुआ मस्तक ,जो उसने गले में
बाँध रखा है ,उसे चाव से मार्ग दिखाता जा रहा है |
हूँ लाजूं रण भाजता,
लाजै इण धर माथ |
चूड़ो धण ,पय
मात रो,
लाजै हेकण साथ ||१४७||
युद्ध क्षेत्र से भागने
पर न केवल मैं लज्जित होता हूँ बल्कि इस धरती का मस्तक भी लज्जा से झुक जाता है | इतना ही नहीं ,पत्नी का चूड़ा व माता का दूध भी एक साथ लज्जित होता
है
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