सिर देणों रण खेत में ,
स्याम धर्म हित चाह |
सुत देणों मुख मौत में ,
इण धर रुड़ी राह ||१३०||
स्याम धर्म हित चाह |
सुत देणों मुख मौत में ,
इण धर रुड़ी राह ||१३०||
रण-क्षेत्र में अपना मस्तक अर्पित करना,स्वामी का हमेशा हित चिंतन
करना व अपने पुत्रों को भी स्वधर्म पालन के लिए मौत के मुंह में धकेल देना इस
राजस्थान की पावन धरती की परम्परा रही है |
खग बावै भड एक हथ,
बिजै हथ निज माथ |
सिव धण पूछे पीव नै ,
किसो सराउं हाथ ||१३१||
बिजै हथ निज माथ |
सिव धण पूछे पीव नै ,
किसो सराउं हाथ ||१३१||
योद्धा एक हाथ से तलवार बजा रहा है तथा दुसरे हाथ में उसका कटा हुआ मस्तक है | इस अदभुत दृश्य को देखकर
पार्वती ने शिव से पूछा - हे प्रियतम ! कहो इनमे से किस हाथ को सराहा जाए ? |
सीस मंगायो सायाधण,
चिता चढ़ण एक साथ |
खग राखी निज हाथ में,
सिर भेज्यो चर हाथ ||१३२||
चिता चढ़ण एक साथ |
खग राखी निज हाथ में,
सिर भेज्यो चर हाथ ||१३२||
युद्ध में पति की मृत्यु सुनकर वीरांगना ने सहमरण हेतु उसका सिर मंगवाया | उधर युद्ध-क्षेत्र में पति
जीवित था तथापि, अपनी वीर पत्नी का मनोरथ पूर्ण करने के हेतु उस वीर ने अपना
मस्तक काट कर सेवक के साथ भेज दिया ||
फेरां सुणी पुकार जद,
धाडी धन ले जाय |
आधा फेरा इण धरा ,
आधा सुरगां खाय ||१३३ ||
धाडी धन ले जाय |
आधा फेरा इण धरा ,
आधा सुरगां खाय ||१३३ ||
उस वीर ने फेरे लेते हुए ही सुना कि दस्यु एक अबला का पशुधन बलात हरण कर ले जा
रहे है | यह सुनते ही वह आधे फेरों के बीच ही उठ खड़ा हुआ और तथा
पशुधन की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुआ | यों उस वीर ने आधे फेरे यहाँ
व शेष स्वर्ग में पूरे किये |
सन्दर्भ कथा पढने के लिए यहाँ चटका लगाएं
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हेलो चंवरी सांभल्यो,
कंवरी, बात बताय |
पंवरी काटी गाँठ चट,
चढियो भंवरी आय ||१३४||
कंवरी, बात बताय |
पंवरी काटी गाँठ चट,
चढियो भंवरी आय ||१३४||
जैसे ही वह वीर (पाबूजी ) विवाह मंडप में अपने विवाह हेतु बैठा था | उसी समय उन्होंने घोड़ी की
हिनहिनाहट सुनी (हेलो) हिनहिनाहट का तात्पर्य समझकर विपत्ति के विषय में वधु
(कंवरी)को बताया व गठ्जोड़े की गाँठ को तलवार से काटकर युद्ध के लिए घोड़ी पर जा
चढ़ा |
इण ओसर परणी नहीं ,
अजको जुंझ्यो आय |
सखी सजावो साज सह,
सुरगां परणू जाय ||१३५ ||
अजको जुंझ्यो आय |
सखी सजावो साज सह,
सुरगां परणू जाय ||१३५ ||
शत्रु जूझने के लिए चढ़ आया | अत: इस अवसर तो विवाह
सम्पूर्ण नहीं हो सका | हे सखी ! तुम सती होने का सब
साज सजाओ ताकि मैं स्वर्ग में जाकर अपने पति का वरण कर लूँ |
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