दो-दो लंगर पाँव में,
माथै दो दो मोड़ |
दो दो खग धारण कियां,
रण- लाडो बेजोड़ ||१३६||
माथै दो दो मोड़ |
दो दो खग धारण कियां,
रण- लाडो बेजोड़ ||१३६||
यह अनूठा शूरवीर जिसके पांवों में दो दो कड़े है, सिर पर दो दो सेहरे है व अपने
दोनों हाथों में खड्ग धारण कर रखे है,वह युद्ध क्षेत्रों में लड़ता
हुआ अदभुत दुल्हे के समान शोभायमान हो रहा है (दो सेहरे इसलिए कि वीर विवाह मंडप
से सीधा रण-क्षेत्र में जाते समय अपनी भावी पत्नी का सेहरा भी स्मृति स्वरुप साथ
ले जाता है) |
सिर बांधे दो सेहरा,
करां दोय करवार |
दीधा भड नै क्यूँ कहो,
सिर एक थूं करतार ||१३७||
करां दोय करवार |
दीधा भड नै क्यूँ कहो,
सिर एक थूं करतार ||१३७||
उपरोक्त वीर के सम्बन्ध में कवि भगवान् से कहता है कि- इसने दो सेहरे बाँध रखे
है,हाथों से दो तलवारें चला रहा है ,फिर तूने इसको एक ही मस्तक
क्यों दिया ? |
सर कटियाँ रिपु काटणा,
निज वचनां अनुराग |
कोर अंगरखे पूंछणी,
म्यान करन्तां खाग ||१३८||
निज वचनां अनुराग |
कोर अंगरखे पूंछणी,
म्यान करन्तां खाग ||१३८||
सच्चे शूरवीर अपने वचन की रक्षा करते हुए सर कटने पर के बाद भी शत्रु को काटते
चले जाते है व अपनी रक्त रंजित तलवार से शत्रु को समाप्त कर उसे म्यान में रखने से
पूर्व अंगरखे से साफ़ करते है |
कटियाँ पहलां कोड सूं,
गाथ सुनी निज आय |
जिण विध कवि जतावियो,
उण विध कटियो जाय ||१३९||
गाथ सुनी निज आय |
जिण विध कवि जतावियो,
उण विध कटियो जाय ||१३९||
वीर कल्ला रायमलोत ने युद्ध-क्षेत्र में जाने से पूर्व कवि से कहा कि -आप मेरे
लिए युद्ध का पूर्व वर्णन करो ,ताकि मैं उसी अनुसार युद्ध कर
सकूँ |
और उसने कवि द्वारा अपने लिए वर्णित शौर्य गाथा चाव से सुनी और जैसे कवि ने उसके लिए युद्ध कौशल का वर्णन किया था,उस शूरवीर ने उसी भाँती असि-धारा का आलिंगन करते हुए वीर-गति प्राप्त की |
और उसने कवि द्वारा अपने लिए वर्णित शौर्य गाथा चाव से सुनी और जैसे कवि ने उसके लिए युद्ध कौशल का वर्णन किया था,उस शूरवीर ने उसी भाँती असि-धारा का आलिंगन करते हुए वीर-गति प्राप्त की |
पट केसरिया मोड़ सिर,
छोड़ी जीवण आस |
सधवा विधवा भेस दो ,
भेज्या निज धण पास ||१४०||
छोड़ी जीवण आस |
सधवा विधवा भेस दो ,
भेज्या निज धण पास ||१४०||
रण-भूमि में सेहरा बाँध कर केसरिया करने वाले शूरवीर ने जीवन की आशा समाप्त हो
जाने के पर,अपनी पत्नी के पास भिन्न प्रकार की दो पौशाकें भिजवाई -यह कहलाते हुए कि यदि
सती होना चाहो तो तो सधवा तथा जीवित रहना चाहो तो विधवा वेश धारण करो |
सखी रंगावो चुन्दडी,
श्रीफल लावो साज |
पिव लीधो रण रो बरत,
कीधो मोसर आज ||१४१||
श्रीफल लावो साज |
पिव लीधो रण रो बरत,
कीधो मोसर आज ||१४१||
वीरांगना कहती है ,कि हे सखी ! मेरे लिए चुन्दडी
रंगवाओ तथा श्रीफल थाल में सजाकर लाओ | क्योंकि मेरे प्रियतम ने आज
रण में शाका करने का व्रत लिया है | मेरे लिए यह कैसा सुअवसर
उपस्थित हुआ है | अर्थात मैं जौहर व्रत लेकर स्वर्ग का वरण
करुँगी |
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