नभ
लहराती बादली,
बीजल रेख बणाय |
ज्यूँ काजलिया चीर पर,
गोटो कोर खिंचाय ||२६८||
बीजल रेख बणाय |
ज्यूँ काजलिया चीर पर,
गोटो कोर खिंचाय ||२६८||
आकाश में घुमड़ती हुई
बादली के बीच विद्युत रेखा ऐसी दिखाई दे रही है जैसे काले रंग की ओढ़नी पर गोटे की
किनारी जड़ी हो |
सरवर
पाल सुहावणी,
की सोभा केणीह |
मृग नाचै, लटका करै,
मटका मृग नैणीह ||२६९||
की सोभा केणीह |
मृग नाचै, लटका करै,
मटका मृग नैणीह ||२६९||
ऐसे सरोवर की सुन्दर
पाल की शोभा का कैसे वर्णन किया जा सकता है जहाँ पर वर्षा के बाद मस्त हुए मृग
क्रीड़ा करते है व मृगनयनी चंचल स्त्रियाँ जल भरने के लिए आती है |
मोर
नाचवै खेत में,
और ढोर मझ कीच |
छम छम करता छोकरा,
नाचै नाडी तीर ||२७०||
और ढोर मझ कीच |
छम छम करता छोकरा,
नाचै नाडी तीर ||२७०||
खेतों में मोर नाच रहे
है तथा कीचड़ में पशु प्रसन्न होकर लोट रहे है | इधर बालक ताल-तलैयों में जल-क्रीड़ा का आनंद ले रहे
है |
कुरजां
थे आकास में,
कित जावो, की काम ?
इण धर रो संदेसड़ो,
पहुंचावण उण धाम ||२७१||
कित जावो, की काम ?
इण धर रो संदेसड़ो,
पहुंचावण उण धाम ||२७१||
हे कुरजां ! तुम आकाश
में कहाँ तथा किस काम से जा रही हो ? क्या
तुम इस धरती से किसी विरहणी का सन्देश उस स्थान उसके प्रियतम के पास पहुँचाने के
लिए जा रही हो |
बूंदा
साथै बरसिया ,
हाथ छुवां मुरझाय |
मखमल जिम मिमोलिया ,
वसुधा रूप बढ़ाय ||२७२||
हाथ छुवां मुरझाय |
मखमल जिम मिमोलिया ,
वसुधा रूप बढ़ाय ||२७२||
वर्षा की बूंदों के
साथ बरसने वाली तथा हाथ के छू देने भर से मुरझा जाने वाली मखमल-सी मुलायम वीर-बहती
(सावन की तीज) पृथ्वी की शोभा में चार चाँद लगा रही है |
दल
बादल सा उमडिया,
आथूणा इक साथ |
लांघण राखो टिड्डीयां,
बाँधण आवै नाथ ||२७३||
आथूणा इक साथ |
लांघण राखो टिड्डीयां,
बाँधण आवै नाथ ||२७३||
पश्चिम दिशा से
टिड्डियों का दल-बादल सा उमड़ता हुआ आ रहा है | हे टिड्डियो ! तुम थोड़ी देर लंघन करलो | तुम्हे बांधने (अभिमंत्रित करने) हेतु नाथ (जोगी) आ
रहा है |(नोट-राजस्थान में टिड्डी दल आने पर जोगी उसे
अभिमंत्रित कर खेती को विनाश से बचा लेते थे )
No comments:
Post a Comment