मुरछित सुभड़
भडक्कियो,
सिन्धु कान सुणीह
|
जाणं उकलता तेल
में,
पाणी बूंद पडिह ||१०३||
युद्ध में घावों
से घायल हुआ व् अचेत योद्धा भी विरोतेजनी सिन्धु राग सुनते ही सहसा भड़क उठा,मानो खौलते तेल
में पानी की बूंद पड़ गई हो |
बाजां मांगल
बाजतां,
हेली हलचल काय |
कलपै जीवण कायरां,
सूरां समर सजाय ||१०४||
हे सखी ! रण के
मंगल वाद्य बजते ही यह कैसी हलचल हो गई है ? स्पष्ट ही इसे सुन जहाँ कायरों का कलेजा कांप
उठता है वहां शूरवीरों ने रण का साज सजा लिया है |
हेली धव हाकल
सुणों,
टूट्या गढ़ तालाह
|
खैंच खचाखच खग
बहै,
लोही परनालाह ||१०५||
हे सखी ! मेरे
वीर स्वामी की ललकार सुनों ,जिसके श्रवण मात्र से ही गढ़ के ताले टूट गए है | शत्रु दल में
उनका खड्ग खचाखच चल रहा है ,जिससे रुधिर के नाले बहने लगे है |
आंथै नित आकास
में,
राहू गरसै आज |
हिन्दू-रवि
आंथ्यो नहीं,
तपियौ हेक समान ||१२१||
सूर्य भी
प्रतिदिन आकाश में अस्त होता है व कभी कभी राहू-केतु से भी ग्रसित होता है ,लेकिन हिन्दुवा
सूरज महाराणा प्रताप रूपी सूर्य कभी अस्त नहीं हुआ व जीवन पर्यंत एक समान तेजस्वी
बना रहा |
घर घोड़ो, खग कामणी,
हियो हाथ निज मीत
|
सेलां बाटी सेकणी,
स्याम धरम रण नीत
||१२२||
इसमें वीर पुरुष
के लक्षण बताये गए है -
घोडा ही उसका घर
है ,तलवार ही उसकी
पत्नी है | हृदय और हाथ ही उसके मित्र है ,वह अश्वारूढ़ हुआ भालों की नोक से ही बाटी सेंकता है ,तथा स्वामी-धर्म
को ही अपनी युद्ध-नीति समझता है |
जलम्यो केवल एक
बर,
परणी एकज नार |
लडियो, मरियो कौल पर,
इक भड दो दो बार ||१२३ ||
उस वीर ने केवल
एक ही बार जन्म लिया तथा एक ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर
दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ |
आईये आज परिचित
होते है उस बांके वीर बल्लू चंपावत से जिसने एक बार वीर गति प्राप्त करने के
बावजूद भी अपने दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध क्षेत्र में लौट आया और दुबारा
लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की |
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