Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान -7


बौले सुरपत बैण यूँ ,
सुरपुर राखण सान |
सुरग बसाऊं आज सूं,
नान्हों सो रजथान ||४०||

सुर-पति इंद्र कहता है कि स्वर्ग की शान रखने के लिए आज से मैं यहाँ भी एक छोटा सा राजस्थान बसाऊंगा | (ताकि लोग स्वर्ग को भी वीर भूमि समझे )

दो दो मेला भरे,
पूजै दो दो ठौड़ |
सिर कटियो जिण ठौड़ पर ,
धड़ जुंझी जिण ठौड़ || ४१||


एक ही वीर की स्मृति में दो दो स्थानों पर मेले लगते है और दो स्थानों पर उनकी पूजा होती है | एक स्थान वह है ,जहाँ युद्ध में उस वीर का सिर कट कर भूमि पर गिरा तथा दूसरा स्थान वह है जहाँ सिर कटने के उपरांत उसकी धड़ (शरीर) लडती (जूझती)हुई धराशायी हुई | क्योंकि सिर कटने के बाद भी योद्धा का धड़ युद्ध करता हुआ कई मीलों तक आगे निकल जाता था |

मरत घुरावै ढोलडा,
गावै मंगल गीत |
अमलां महफल ओपणी,
इण धरती आ रीत ||४२||


यहाँ मरण को भी पर्व मानते हुए मृत्यु पर ढोल बजवाये जाते है एवं मंगल गीत गवाए जाते है | अमल-पान की महफ़िल होती है | इस वीर-भूमि की यही रीत है |

उण घर सुणिया गीतडा,
इण घर ढोल नगार |
उण घर परण त्युहार हो ,
इण घर मरण त्युंहार ||४३||


विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष के यहाँ मंगल गीत गाए जा रहे थे ,उसी समय युद्ध की सूचना मिलने पर वर के घर पर युद्ध के ढोल नगारे आदि रण-वाध्य बजने लगे | उधर परण-त्योंहार मनाया जा रहा था तो इधर मरण-त्योंहार की तैयारियां हो रही थी |

देवलियां पग पग खड़ी,
पग पग देव निवास |
भूलोड़ा इतिहास रौ,
गावै नित इतिहास ||४४||


राजस्थान में स्थान स्थान पर देवलियों के रूप में प्रस्तर के वीर स्मारक खड़े है और स्थान स्थान पर ही वीरों के देवालय है जो हमारे विस्मृत इतिहास का नित्य इतिहास गान करते है अर्थात विस्मृत इतिहास की स्मृति कराते है |

कुवांरी काठां चढ़े,
जुंझे सिर बिण जंग |
रीठ-पीठ देवै नहीं ,
इण धरती धण रंग ||४५||


किसी वीर को पति बनाने का संकल्प धारण कर लेने के बाद यदि उस वीर की युद्ध में मृत्यु हो जाय तो संकल्प करने वाली वह कुंवारी ही सती हो जाया करती थी तथा यहाँ के शूरवीर सिर कटने के बाद उपरांत भी युद्ध करते थे व युद्ध भूमि में पीठ नहीं दिखाते | ऐसी यह वीर-भूमि बारम्बार धन्य है |

No comments:

Mera Desh Ro Raha Hai