Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-29



लेवण आवे लपकता,
सेवण माल हजार |
माथा देवण मूलकनै,
थोडा मानस त्यार ||१७२||

मुफ्त में धन लेने के लिए व धन का संग्रह करने के लिए तो हजारों लोग स्वत: ही दौड़ पड़ते है ,किन्तु देश की रक्षा के लिए अपना मस्तक देने वाले तो बिरले ही मनुष्य होते है |

मोजां साथो मोकला,
बोलण मीठा बोल |
बिरला आसी साथ में ,
रण माचंता रौल ||१७३||

सुख में मीठे बोल कर मोज मनाने वाले साथियों की कमी नहीं है ,किन्तु रण-क्षेत्र में आव्हान होने पर साथ देने वाले बिरले ही होते है |

नह आसी आराण में,
गटक उडावण गटट |
सूरा खासी घाव सिर,
रण मचतां गह गटट ||१७४||

माल खाने वाले युद्ध में कभी नहीं आयेंगे | केवल शूरवीर ही युद्ध छिड़ने पर अपने सिर में घाव झेलेंगे |

कायर ताणे ढोल निज,
बोलै बढ़ बढ़ बोल |
सायर जाणे मोल निज,
बोलै ढब ढब तोल ||१७५||

कायर व्यक्ति बढ़ बढ़ कर बातें करता है और ढोल की तरह तना हुआ रहता है किन्तु सज्जन (शूरवीर) अपनी सामर्थ्य जानता है और वह बात तभी बोलता है जब वह अपने सामर्थ्य से तोलकर इस निश्चय पर पहुँचता है कि वह जो कुछ कह रहा है उसको पूरा कर सकता है |

सूरां वाणी सारथक,
कायर उपजै ताव |
कायर वाणी जोसरी ,
सूर न आवै साव ||१७६||

वीरों की वाणी सदैव सार्थक होती है | कायर को केवल निष्फल क्रोध आता है | कायर मात्र जोशीले बोल बोलते है परन्तु शूरवीर थोथी बढ़ाई नहीं करते |

आकासा गीला गिरै,
तोपां काढै बट्ट |
सूता घर में सायबा ,
रण मांची गहगट्ट ||१७७||

अपने पति को संबोधित करते हुए पत्नी कहती है कि आकाश से गोले गिर रहे है | तोपें आग उगल रही है | युद्ध भूमि में घमासान युद्ध छिड़ गया है और आप घर में सोये हुए है (अर्थात युद्ध में पहुँचो) ||

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