सूरापण सु-नसों
सकड़,
ढील न लागै
ढिंग्ग |
पीवै नीं वो
डगमगै ,
पीधां बणे अडिग्ग
||११५||
शौर्य का नशा भी
बड़ा प्रबल है | जिसके चढ़ने पर व्यक्ति अडिग व चुस्त हो जाता है | जो इस शौर्य के नशे को नहीं पीता वह ही डगमगाता
रहता है और जो पी लेता है वह अविचलित हो जाता है |
हियै निराशा न
रहै,
मुंजीपण मिट जाय |
सूरापण जिण घट
बसै,
झूठ कपट झट जाय ||११६||
जिस हृदय में
शौर्य निवास करता है,उस ह्रदय में निराशा व्याप्त नहीं हो सकती है व कृपणता भी
विलीन हो जाती है |जिस हृदय में शौर्य निवास करता है ,उससे झूठ व कपट भी स्वत: ही दूर हो जाते है |
जग चालै जिण
मारगां,
भड चालै उण नांह |
कठिण भडां सथ
चालणों,
विकत भडां री राह
||११७||
संसार जिस मार्ग
पर चलता है ,वीर उस मार्ग पर नहीं चलते | वीरों का मार्ग बड़ा विकट होता है अत: उनके साथ चलना बहित
कठिन है |
जग अधपत नहै आदरै,
बिसरै जुग बितांह
|
सूरां चित भावै
सदा ,
गावै नित गीतांह ||११८||
संसार में बड़े
बड़े अधिपतियों का कालांतर में कोई आदर नहीं करता | युग बीतने के साथ लोग उन्हें भूल जाते है | परन्तु शूरवीर तो
सदा ही लोक-मानस में श्रद्धा से स्मरण किए जाते है तथा उनका यश नित्य गीतों में
गूंजता है |
ईस चरण नमतो सदा,
कै कटतो पर काज |
केव्यां आगल किम
नमै,
अनमी माथो आज ||११९||
वीर कहता है -
मेरा सिर या तो ईश्वर के चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है या फिर दूसरों
के हित में कट कर भूमि के चरणों में झुकता है | ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष
कैसे झुक सकता है |
आदर सूं जिणों
सदा ,
आदर धरती आन |
जिण घर आदर नह
रहै ,
वा घर नरक समान ||१२०||
सदैव आदर से जीना ही अच्छा रहता है क्योंकि आदर इस धरती
की आन है | जिस धरती पर आदर नहीं होता ,वह
धरती नरक समान होती
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