धरती
ठंडी बायरी,
धोरा पर गरमाय |
कामण जाणे कलमली,
पिव री संगत पाय ||२९५||
धोरा पर गरमाय |
कामण जाणे कलमली,
पिव री संगत पाय ||२९५||
धरती पर बहने वाली
शीतल वायु टीलों पर से गुजर कर गर्म हो जाती है ,जैसे प्रिय का संपर्क पाकर कामिनी गर्मी से चंचल हो
उठती है |
सीतल
पण डावो घणों,
दिलां आग लपटाय |
डावो बण तूं डावड़ा,
जालै फसलां जाय ||२९६||
दिलां आग लपटाय |
डावो बण तूं डावड़ा,
जालै फसलां जाय ||२९६||
उतर का शीत पवन यधपि
शीतल है तथापि बहुत शरारती (चालाक)है ,जो
दिलों में तो प्रिय मिलन की आग सुलगा देता है और उदंडी लड़के की तरह फसलों को जला
देता है |
"दावे" (ठण्ड) से
फसलें जल जाती है |
लू
ताती बालै नहीं,
धन जन सह सरसाय |
आ बालण उतराद री ,
रोग सोग बरसाय ||२९७||
धन जन सह सरसाय |
आ बालण उतराद री ,
रोग सोग बरसाय ||२९७||
लूएँ जलाती नहीं है , बल्कि धन-जन सबको सरसा देती है | किन्तु वह दुग्ध्कारी उतर वात(बर्फीली हवा) तो रोग
और शोक बरसाने वाली है |
उमंगै
धरती उपरै,
पेडां मधरो हास |
मत गयेंद ज्यू मानवी ,
आयो फागण मास ||२९८||
पेडां मधरो हास |
मत गयेंद ज्यू मानवी ,
आयो फागण मास ||२९८||
धरती पर उमंग छा गई है
और पेड़ों पर मंद मंद मुस्कान छाने लगी है अर्थात नई कोंपले आने लगी है | फागुन मास मानवों के लिए मस्त हाथी की सी (उन्माद)
लाने वाला है |
मेला
फागण मोकला,
भेला भाग सुभाग |
रेला दिल दरयाव रा,
खेला गावै फाग ||२९९||
भेला भाग सुभाग |
रेला दिल दरयाव रा,
खेला गावै फाग ||२९९||
फागुन में अनेक मेले
भरते है ,जिनमे सबको हर्षोल्लास होता है | सब मुक्त ह्रदय से रंग-रेलियाँ करते है तथा खेलों
(लोक नृत्यों) में फाग के गीत गाते है |
पीला
जाय सुहावणा,
धरती पीली रेत |
सखियाँ पोला पट किया,
सरसों पीला खेत ||३००||
धरती पीली रेत |
सखियाँ पोला पट किया,
सरसों पीला खेत ||३००||
बसंत ऋतू के आगमन पर
सरसों के पीले खेत जहाँ एक और सुहावने नजर आते है ,वहीँ दूसरी और पीली बालू मिटटी से युक्त धरती
शोभायमान हो रही है | सखियों ने पीले वस्त्र
धारण कर रखें है | सर्वत्र पीली शोभा छाई
है |
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