Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान-48


बरसालो बरसै भलो,
हवा न बाजै लेस |
धोरां में धापा करै,
मोरां हंदो देस ||२८६||


बरसात में अच्छी वर्षा हो व हवा न चले तो रेगिस्तानी इलाके में भरपूर पैदावार होती है | एसा यह मरुप्रदेश है जहाँ मोर-पक्षी अधिक होते है |

बिन बादल आकाश नित,
खै खै पवन चलाय |
काल पड़न्तां इण धरा,
मऊ मालवै जाय ||२८७||


आकाश में कहीं बदल दिखाई नहीं देते और सनन सनन हवाएं चल रही है | स्पष्ट ही ये अकाल के पड़ने के लक्षण है | अकाल पड़ने पर यहाँ के लोग पशुओं को लेकर मऊ-मालवे (मध्य-प्रदेश) की और चल देते है |

धर ऊपर सुरंगी धरा,
जिण विध देखो आय |
काल पड़न्तां कामणि,
धन बालक रुल जाय ||२८८||


वर्षा होने पर यह धरती स्वर्ग सी दिखाई देती है ,परन्तु अकाल पड़ने पर यहाँ के नर,नारी,बालक तथा पशुधन सब अन्य प्रदेशों में पलायन करने को विवश हो जाते है |

बाजै सीली बायरी,
ऊपर गाजै मेह |
सीयालो आयो सखी,
कऊं हथाई नेह ||२९३||


ठंडी हवा चल रही है और ऊपर से वर्षा के बादल गरज रहे है | हे सखी ! शीत ऋतू आ गई है | इसमें तो अलाव पर तपते हुए आपसी बातचीत करना ही प्रीति वर्धक होता है |

पीणों, पचणों , पैरणों ,
सरदी साथै आय |
खाणों , रैणों खेलणों ,
सीयालै सुख दाय ||२९४||


पानी,पचना और पहनना ये सर्दी के साथ आते है | साथ ही भोजन ,रहना और खेलना ये सब शीत ऋतू में ही सुखदायी होते है |

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