धरती जाती नह रुकै,
निबलां नांजोगांह |
रजवट बाँधी आ रसा,
जावै नह जोगांह ||१९०||
निर्बल और योग्य व्यक्तियों के अधिकार से जाती
हुई धरती रूकती नहीं है क्योंकि यह धरती योग्य व्यक्तियों के साथ वीरता की रस्सी
से बंधी है, अत: उन्हें छोड़कर ये नहीं जा सकती |
निबला पासै ना रुकै,
अकड़ भोग, अधिकार
|
डोको फाडै डाँग नै,
टणकाई बलिहार ||१९१||
निर्बल व्यक्तियों के पास स्वाभिमान,भोग व अधिकार नहीं रुक सकते है | बलवान का डोका (सरकंडा) निर्बल की लाठी को भी
चीर देता है,अत: मैं बल को ही नमस्कार करता हूँ |
व्हाली इज्जत इण धरा,
व्हालो धरम विसेस |
व्हालो रण में मरण नित,
नित व्हालो निज देस ||१९२||
इस मेरे देश की भूमि इज्जत वाली व धर्म को ही
विशिष्ट मानने वाली है | यहाँ के लोग
युद्ध में मरने को अभिलाषा रखने वाले व नीति पालन वाले है |
जलम लियौ जिण देस में,
भोग्यो चकवै राज |
भूल्यां उण नै किम सरै,
अबखी बेलां आज ||१९३||
हे चकवा ! मैंने इस देश में जन्म लिया है, यहीं पर मैंने राज्य भोगा है | अब इस विपत्ति की बेला में इस देश को भूलने से
कैसे काम चलेगा |
की चाढूं इण देस पर,
की राखूँ करतार ?
सिर चाढूं सौ जलमती,
उतरै नी रिण-भार ||१९४||
हे विधाता ! मैं इस देश पर क्या चढ़ाऊँ व क्या
रखूँ ? यदि सौ जन्म लेकर भी मैं प्रत्येक जन्म
में इस देश की रक्षा के लिए मस्तक कटवाता रहूँ तो भी इस देश के ऋण से उऋण नहीं हो
सकता |
बन निरजन घूंघूट करै,
पग उरभांण पंत |
भोम्याजी रो थांन लख,
कामण लाज करंत ||१९५||
निर्जन जंगल में भी भोमियाजी का थान(स्थान)
देखकर कामिनी (स्त्री) आदर स्वरूप अपनी जूतियाँ उतारकर घूंघुट निकाल लेती है | (जन्म भूमि के उत्सर्ग होने वालों का मृत्यु के
बाद भी सम्मान होता है )||
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