तीनों पोल्यां देवल्यां,
देवल तीन खड़ीह |
धव पहली सुत दूसरी,
तीजी आप लड़ीह ||६४||
दुर्ग के तीनों द्वारों की
देहलियों पर तीन देवलियां है | पहली पति पर,दूसरी पुत्र पर तथा तीसरी
स्वयं पर है जहाँ पर वह लड़ी थी |
चारों जुग तिहूँ लोक में,
ठावी एकज ठौड़ |
सूर-सती सुमरै सदा,
तीर्थ गढ़ चितौड़ ||६५||
चारों युगों व तीनों लोकों में एक ही तीर्थ स्थान चितौड़गढ़ धन्य है,जिसका सभी वीर व सतियाँ सदा
स्मरण करती है |
बल बंकौ रण बंकड़ो,
सूर-सती सिर मोड़ |
प्रण बंकौ प्रबली धरा,
चंगों गढ़ चितौड़ ||६६||
बल में बांका,रण-बांकुरा,शूरों व सतियों का सिर-मौर,वचनों की टेक रखने वाला तथा
आंटीला चितौड़ दुर्ग ही सर्व-श्रेष्ठ है |
रण रमियो,रण रोति सूं,
रणमल रणथम्भोर |
राख्यो हठ हमीर रौ,
कट-कट खागां कोर ||६७||
कवि रणथम्भोर की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि युद्ध की परम्परा को निभाने वाला
वीरों का रण-स्थल यह रणथम्भोर दुर्ग अविचल है,जिसने स्वयं असिधारा से खंड
खंड होकर भी वीर हमीर के हठ को अखंड रखा |
सूरो गढ़ जालौर रो,
सूरां रौ सिंणगार |
अजै सुनीजै उण धरा,
वीरम दे हूंकार ||६८||
जालौर का यह वीर दुर्ग वीरों का श्रृंगार है | उसके कण-कण में आज भी विरमदेव
की हूंकार सुनाई देती है |
पच्छिम दिस पहरी सदा,
गढ़ जैसाणों सेस |
अजै रुखालो सूरतां,
अजै रुखालो देस ||६९||
जैसलमेर का यह दुर्ग सदा से ही पश्चिम दिशा का प्रहरी रहा है | यह दुर्ग आज भी वीरता की
रखवाली करता हुआ देश की रक्षा कर रहा है |
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