पंथ प्रवर्तक बप्पा रावल जिन पुण्य नामों के स्मरण मात्र से रक्त में ज्वार आ जाता है, सिर जिनकी स्मृति में श्रद्धा से झुक जाता है, ऐसे अनेक प्रातः स्मरणीय नामों में से एक नाम है बप्पा रावल !
१४००, चौदह सौ वर्षों तक देश की रक्षा का कीर्तिमान स्थापित करने वाले महान् मेवाड़ वंश के आदिपुरुष बप्पा रावल का नाम लिखने मात्र से लेखनी धन्य हो जाती है ! जिह्वा पवित्र हो जाती है ! हृदय अमरता के उल्लास से भर जाता है और भुजाएं फड़कने लगतीं हैं !
मुहम्मद बिन कासिम का 712 ईसवी में सिंध पर अधिकार हो चुका था ! मुस्लिम लुटेरों ने उसके भी पश्चिम के भारत और मध्य एशिया में तो पहले ही कुहराम मचा रखा था ! अब सिंध के टूटने के बाद तो वे भारत की तत्कालीन राजधानी चित्तौडगढ़ तक भी अपनी कारगुजारी दिखाने से बाज नहीं आते थे !
ऐसे समय में बप्पा रावल का अवतार हुआ ! मानो भगवान् का ही अवतार हुआ ! बप्पा रावल की कथा मरे हुओं में भी प्राण फूंकने वाली है !
बप्पा रावल (शासनकाल 734-753) सिसोदिया राजवंश मेवाड़ का प्रतापी शासक था। उदयपुर (मेवाड़) रियासत की स्थापना आठवीं शताब्दी में सिसोदिया राजपूतों ने की थी। बप्पा रावल को 'कालभोज' भी कहा जाता था।
जनता ने बप्पा रावल के प्रजासंरक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही इसे 'बापा' पदवी से विभूषित किया था। कर्नल टॉड के अनुसार सन् 728 ई. में बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ को राजपूताने पर राज्य करने वाले मौर्यवंश के अंतिम शासक मान मौर्य से छीनकर गुहिलवंशीय राज्य की स्थापना की।
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