गूद गटककै
गोधणयां, हड्ड चटककै स्याल
|
बूथ बटककै
बैरियाँ, मंडै रण मतवाल ||९४||
जब रण के मतवाले
शूरवीर क्रुद्ध होकर युद्ध करते है,तो उनके द्वारा किए गए प्रचंड नर-संहार से युद्ध-भूमि धडों
व सिरों से भर जाती है | यहाँ विचरण करने वाली गिधनियाँ तृप्त होकर मांस गटकती है
तथा सियार हड्डियाँ चटकते हुए छककर शत्रुओं की बोटियाँ बटकते है |
सीस फुदककै किम
सखी, कमध धमककै खाग |
अरि भालै आराण
में, रिंझे सिन्धु राग
||९५||
हे सखी ! रण-भूमि
में वीर का ये कटा हुआ मस्तक कैसे फुदक रहा है व इसका ये धड किस कारण से तलवार
चलाने में समर्थ है ?
सखी उत्तर देती
है - यह कटा हुआ सिर उछल-उछल कर युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों को देख रहा है व
रण-वाद्यों के द्वारा जो सिन्धु राग गाई जा रही है ,उससे हो रहे वीर रस के संचार से ये धड बिना
मस्तक के ही तलवार चलाने में समर्थ है |
सीस धरा धड पागडै, हय खुँदै होदांह |
लोहो नलां , खागां गलां , नाचै कर मोदांह ||९६||
युद्ध करते हुए
वीर का मस्तक कट के धरा पर गिर पड़ा किन्तु धड यथावत घोड़े पर सवार है ,पैर पगाडों में
है व घोड़े के अगले पैर,हाथी के मस्तक पर जा टिके है | सिर कटे हुए शूरवीर ने होदे में बैठे शत्रु पर
तलवार से प्रहार किया है ,तलवार शत्रु की गर्दन पर जाकर लगी है जिससे खून का नाला बह
चला है | इससे प्रफुल्लित
होकर घोड़े पर सवार वीर का धड प्रसन्नता से नाच रहा है |
नान्हा
गीगा-गीगली, जामण, कामण गेह |
भड बाल्या निज
हाथ सूं, करतब ऊँचो नेह ||१०६||
जौहर के अवसर पर
दूध-मुहें बच्चों,निज जननी तथा अपनी भार्या को अग्नि की लपटों के समर्पित कर वीरों ने यह सिद्ध
कर दिया है,कि कर्तव्य प्रेम से भी बड़ा होता है |
कुटम कबिलौ आपरौ , सह पालै संसार |
भड बालै करतब
तणों, क्षात्र धर्म
बलिहार ||१०७||
अपने परिवार का
पालन पोषण तो सारा संसार ही करता है ,परन्तु वीर तो कर्तव्य की वेदी पर अपने परिवार
को भी झोंक देता है | निश्चय ही हम इस क्षात्र धर्म पर बलिहारी है |
सूत केसरिया धुज
गही, धब केसरिया भेह |
धण केसरिया आग
में ,बाली केसर देह ||१०८||
पुत्र ने
केशरियां ध्वज ग्रहण किया तथा पति ने केशरिया वेश | उधर वीर पत्नी ने भी अपनी केशर सी काया को
केशरिया आग की लपटों में झोंक दिया |
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