सट रस भोजन सीत में,
पाचण राखै खैर |
पान नहीं पर कल्पतरु ,
किण विध भुलाँ कैर ||३०७||
(जिस फल के प्रयोग से ) सर्दी के मौसम
में छ:रसों वाला भोजन अच्छी तरह पच जाता है | उस
कैर (राजस्थान की एक विशेष झाड़ी) को किस प्रकार भुलाया जा सकता है जो कि बिना
पत्तों वाले कल्पतरु के समान है |
कैर,कुमटिया
सांगरी,
काचर बोर मतीर |
तीनूं लोकां नह मिलै,
तरसै देव अखीर ||३०८||
कैर के केरिया , सांगरी
(खेजडे के वृक्ष की फली) काचर ,बोर (बैर के फल)
और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है | इनके
लिए तो देवता भी तरसते रहते है |
जोड़ा मिल घूमर घलै,
घोड़ा घूमर दौर |
मोड़ा आया सायबा ,
खेलण नै गिणगोर ||३०९||
जोड़े आपस में मिलकर घूमर नाच नाचते है | घोड़े घूमर दौड़ते है | पत्नी
कहती है , हे साहिबा ! आप गणगौर खेलने हेतु बहुत
देर से आए है |
अण बुझ्या सावा घणा,
हाटां मुंगी चीज |
सुगन मनावो सायबा ,
आई आखा तीज ||३१०||
अबूझ (ऐसे विवाह मुहूर्त जिनके लिए पंचांग नहीं
देखना पड़ता) सावों में आखा तीज (अक्षय तृतीया) का महत्व अधिक है क्योंकि इस समय
सूर्य उच्च का होता है जिसके कारण अन्य ग्रहों के दोष प्रभावित नहीं कर सकते | इसीलिए कवि कहता है - अबूझ सावे तो बहुत है पर
आखा तीज आ गई है इसी पर हे साहिबा (पति) विवाह का मुहूर्त निश्चित करदो यधपि इस
अवसर पर वस्तुएं महंगी रहेगी |
रज साँची भड रगत सूं ,
रोडां रगतां घोल |
इण सूं राजस्थान में ,
डूंगर टीबां बोल ||३११||
यहाँ की मिटटी को शूरवीरों ने अपने रक्त से
रंगा है व पत्थरों को खून से पोता है , इसीलिए
राजस्थान के पहाड़ और रेतीले टीले (निर्जीव होते हुए भी) आज बोलकर उनकी गाथाओं को
सुना रहे है |
आपस में व्हे एक मत ,
रज-कण धोरां रूप |
आंधी बरसा अडिग नित,
सिर ऊँचो सारूप ||३१२||
राजस्थान की साथ जीने मरने की परम्परा से ही
यहाँ के मिटटी के कणों ने भी एकमत होना सीखा है ,इसीलिए
ही इक्कठे हुए रज कणों से यह टीले बन गए है | संघर्षों
में अडिग रहने की परम्परा से ही ये टीले आंधी व वर्षा में भी अपने मस्तक को ऊँचा
किये हुए अडिग खड़े रहते है |
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