Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हटीलो राजस्थान-50


लाल उमंग ,लाली धरा,
चोली लाल फुहार |
रोली लाल गुलाल मैं,
होली लाल त्युंहार ||३०१||


फाल्गुन के महीने में लोगों के ह्रदय उमंग से भरे हुए है,जगह-जगह गुलाल के बिखर जाने से धरती लाल हो गई है ,लाल रंग व गुलाल से ललनाएं होली खेलती हुई चोलियों पर रंग फैंक रही है ,एसा यह रंगीला त्यौहार होली आ गया है |

डंडिया नाच गुवाड़ में,
हंडियां खरलां साज |
रमणी गैरां मोद-मन<
रामा सामा आज ||३०२||


होली के दुसरे दिन का वर्णन करते हुए कवि कहता है - गांव के चौक में गिंदड़ (डंडिया रास) का खेल हो रहा है | खरलों में हंडिया सजी हुई है | युवतियां मस्त होकर गेर खेल रही है | आज रामा-श्यामा का दिन है |

चेत सुमास बसंत रितु,
घर जंगल सम चाव |
गोरी पूजै गोरड़यां,
बाँवल फोग बणाव ||३०३||


बसंत ऋतु के चेत्र मास में घर और जंगल सब जगह प्रसन्नता की लहर है | स्त्रियाँ फोग (राजस्थान में होने वाला एक विशेष पौधा) का बाँवल बना कर गोरी की पूजा कर रही है |

निमजर फूली नीमडै,
लहलायौ सह गात |
हँसे ज्यूँ आकास में,
तारा गुदली रात ||३०४||


चेत में मास में नीम के पेड़ मिन्झर से लद गए है | ये ऐसे लग रहे है जैसे धुंधली रात में तारे दमक रहें हो |

फूल्यो आज पलास बन,
लाली नजर पसार |
रज गुण सूर सभाव रौ,
सकल धरी साकार ||३०५||


आज जिधर नजर दौड़ाओ,उधर जंगल में पलाश के पेड़ लाल फूलों से लहक रहे है | मानों शूरवीरों की धरती का रजोगुण ही इस लालिमा के रूप में साकार हो रहा है |

रोहीडै कलियाँ खिली,
रुड़ी, रूप प्रवीण |
जाणे बहु बजार री,
रुपाली गुण हीण ||३०६||


रोहिडे (एक वृक्ष) की गंध हीन लाल-लाल कलियाँ बड़ी रुचिर लग रही है परन्तु ये ऐसी ही है , जैसे वारवधुएँ (वेश्याएं) केवल देखने में ही सुन्दर है ,गुणों में नहीं |

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