भाज्यां भाकर लाजसी,
लाजै कुल री लाज |
सिर ऊँचौ अनमी सदा,
आबू लाजै आज ||१४८||
यदि मैं युद्ध क्षेत्र से पलायन करूँ तो गौरव
से ही जो ऊँचे हुए है वे पर्वत भी लज्जित होंगे व साथ ही मेरी कुल मर्यादा भी
लज्जित होगी | यही नहीं,सदा
गौरव से जिसका मस्तक ऊँचा रहा है एसा आबू पर्वत भी मेरे पलायन को देखकर लज्जित
होगा |
रण चालू सुत भागियौ,
घावां लथपथ थाय |
मायड़ हाँचल बाढीया,
धण चूड़ो चटकाय ||१४९||
रण-क्षेत्र से घावों से घायल होकर भाग आए अपने
पुत्र को देखकर वीर-माता ने लज्जित हो अपने स्तन काट डाले ,तथा उसकी वीर पत्नी ने अपनी चूडियाँ चटक (तोड़)
दी |
भाजण पूत बुलावियो,
दूध दिखावण पाण |
छोड़ी हाँचल धार इक,
भाट गयो पाखाण ||१५०||
युद्ध क्षेत्र से भागने वाले अपने पुत्र को
माता ने अपने दूध का पराक्रम दिखाने के लिए बुलाया और अपने स्तनों से दूध की धार
पत्थर पर छोड़ी तो वह भी फट गया |
जण मत जोड़ो जगत में,
दीन-हीन अपहाज |
जोधा भड जुंझार जण,
करज चुकावण काज ||१५१||
हे माता ! तू जगत में दीन-हीन और विकलांग
संतानों को जन्म मत दे | यदि जन्म देना
ही है तो वीर योद्धाओं को,सिर कटने के बाद
भी लड़ने वालों को जो तेरे मातृत्व के ऋण को चूका सके |
गोरी पूजै तप करै,
वर मांगे नित बाल |
बेटो सूर सिरोमणि,
बेटी बंस उजाल ||१५२||
वीर ललना गौरी की अर्चना और तप करती हुई नित्य
यही वरदान मांगती है कि उसका बेटा शूरों में शिरोमणि हो तथा उसकी पुत्री वंश को
उज्जवल करने वाले हो |
नह पूछै गिरहा दशा,
पूछै नह सुत बाण |
मां पूछै ओ व्यास जी,
अडसी कद आ रांण ||१५३||
वीरांगना ज्योतिषी से न तो ग्रह-दशा के बारे
में पूछती है न पुत्र की आदतों के बारे में , बल्कि
वह तो यही पूछती है कि हे व्यास जी ! मेरा पुत्र रण-भूमि में शत्रुओं से कब
भिड़ेगा ? |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
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