Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान-46


चालो खेत सुवावणा,
झिल्ली री झणकार |
बाजरियो झाला दिवै,
मारगियो मनवार ||२७४||



सुहावने खेतों में चलो जहाँ झींगुर की झंकार गूंज रही है | बाजरे के सिट्टे हिल हिल कर संकेतों से बुला रहे है तथा खेत का मार्ग आने की मनुहार कर रहा है |

हींड़ो लूमै होड सूँ,
तीज तणों त्युंहार |
सखियाँ मारै कोरड़ा,
पिव रो नाम पुकार ||२७५||



तीज के त्यौंहार पर सखियाँ होड से झुला झूल रही है तथा एक दूसरे को अपने अपने पति का नामोच्च्चारण कराने हेतु कोड़े मार रही है |

बजै नगारा पीर नभ,
मुख बीजल मुस्कान |
रिम झिम आभै उतरी,
बिरखा बहु समान ||२७६||



आकाश जिसका पीहर है ,वहां गर्जना रूपी नगारे बज रहे है व् जिसकी मुस्कान से बिजली चमकती है ऐसी दुल्हन वर्षा आकाश से रिम-झिम करती हुई धरती पर उतर रही है |

डर मत बिरखा बिनणी,
सासरियो सरताह |
कोमल रज कांटा नथी ,
धरती पग धरताह ||२७७||



हे वर्षा बहू ! तुम धरती पर उतरते हुए डरो नहीं | तुम्हारी ससुराल सब प्रकार से संपन्न है | यहाँ की मिटटी कोमल है और कहीं कांटे नहीं है |

काली कांठल घोर रव,
सज धज बिरखा साज |
जाणे गढ़ गिरनार सूँ ,
उतरी कामण आज ||२७८||



उमड़ते -घुमड़ते काले बादलों के रूप में प्रचंड गर्जना के साथ सज-धज कर वर्षा वधू आई है | ऐसा लगता है ,जैसे गढ़ गिरनार से कोई कामिनी उतरी हो |

मटमैली सासू धरा,
रुखा सूखा केस |
आई बिरखा बिनणी ,
लाई नूतन बेस ||२७९||



पृथ्वी रूपी सास, बिरखा -बिनणी (वर्षा वधू) के आगमन से पूर्व मटमैली और रुक्ष केशों वाली थी | अब वर्षा वधू उसके लिए नया परिधान लायी है |(वर्षा धरती को हरियाली से आच्छादित कर देती है )

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