Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान-36



घुमै साथै रेवडां,

धारयां जोगी भेस |
गंगा जमुना एक पग,
बीजो मालब देस ||२१४||

राजस्थान के भेड़ बकरियों चराने वाले अपने रेवड़ों के साथ अकाल के समय कभी मालव प्रदेश में कभी गंगा यमुना के किनारे अपने पशुओं को चराने के लिए फिरते रहते है , क्या वे उन संतों के समान नहीं है जो कि गंगा यमुना के किनारे या मालव प्रदेश में नर्वदा के तट पर रहना पसंद करते है |


अन्न न देखै आँख सूँ,
सांड्या रो ही बास |
रेबारी पय-पान नित,
पलकै लोही मांस ||२१५||


अन्न जिन्हें आँखों से ही देखने को सुलभ नहीं है क्योंकि वे जंगल में ही निवास करते है | ऐसे रेबारी (ऊंट-पालक) ऊंटनियों का दूध पीकर ही रहते है जो इतना पोषक होता है कि उनकी (रेबारियों की) मांसपेसियां रक्त-वर्ण सी चमकीली होती है जिससे एसा प्रतीत होता है मानों खून मांस-पेशियों के ऊपर चमक रहा हो |

अबै नहीं हुक्का रह्या ,
रिया न चमड़ पोस |
नारेल्यां रहिया निपट,
चिलमां बीडी तोस ||२१६||




अब न तो हुक्का ही रहा है और न ही चमड़ पोस (चमड़े का हुक्का) व नारियल के हुक्के भी नहीं रहे | अब तो चिलम और बीडी से ही संतोष करना पड़ता है |


मुकलावै लाई घरां ,
बीत्या बरस पचास |
चरखो कातै आज दिन,
पीढ़े बैठी सास ||२१७||


पचास वर्ष पूर्व मुकलावे (गौने)के समय अपने साथ चरखा लाई थी | उसी चरखे से आज दिन तक सास पीढ़े पर बैठी सूत कात रही है |


तडकाऊ घट्टी फिरै,
गावै हरजस आप |
पीसै कामण नाज नित,
पीसै नित निज पाप ||२१८||


भोर में अपने हाथ से घट्टी (चक्की)फेरती हुई ग्राम्य-ललना हरजस (भजन)गाती है | यों अनाज पीसने के साथ मानों वह अपने पापो को भी पीस देती है |(अर्थात आत्म कल्याण कर लेती है)


दिवराणी पीसै घटी,
जेठाणी बीलोय |
नणद दुहारी नित करै,
देवर सींचै तोय ||२१९||


देवरानी चक्की पीसती है और जेठानी दही बीलो रही है | ननद दूध दुहती है तथा देवर पाणत (फसल में पानी देना) करता है

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