Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-14



होतो नह मेवाड़ तौ,
होती नह हिन्दवाण |
खान्ड़ो कदै न खडकतौ,
भारत छिपतो भाण ||८२||


यदि मेवाड़ नहीं होता तो कभी युद्ध भी नहीं होता व हिंदुत्व भी रक्षित नहीं होता; व इस प्रकार भारत का सूर्य भी अस्त हो जाता है |

बागड़ धर बैसाख में,
आम घणेरा आय |
चावल निपजै चाव सूं,
सुराई सजलाय ||८३||


बागड़ की इस धरती में बैसाख मॉस में आम बहुतायत से होते है | इस प्रदेश के शूरवीरों की वीरता की पांण से भूमि सजल हो गई है इसलिए यहाँ चावल भी बहुतायत से पैदा होता है |

अमल धरा पर उपजै,
चम्मल रौ परताप |
संबल दुखियां दीं री,
हाडौती बल आप ||८४||


हाडौती की धरती पर अमल तो चम्बल नदी के प्रताप से उत्पन्न होता है | किन्तु दीन दुखी लोगों को आश्रय तो हाडौती की यह धरती स्वयं अपने ही बल पर देती है |

सिर ओही लूंठी धरा,
रोही लूंठी ख़ास |
वा नर-सिंघा आसरो ,
(
आ) सिंघा रो रहवास ||८५||


सिरोही की भूमि व जंगल दोनों ही बलवान है | एक में नर-सिंह व दुसरे में वन-सिंह निवास करते है |

कहसी भेद सु सकल जन,
सिर धरियौ जिण ताज |
जो रहसी अजमेर पर,
करसी भारत राज ||८६||


सभी लोग यही मर्म की बात कहेंगे कि जो शासक सिर पर मुकुट धारण कर अजमेर पर शासन करेगा वही भारत पर पर भी राज्य करेगा | (राजस्थान में यह किवंदती प्रचलित है कि अजमेर के शासकों का ही दिल्ली पर पुन: आधिपत्य होगा) |

वसुधा भोगी बाहुबल,
अगनी तेजस अंस |
आबू पर अवतारिया,
चारुं अगनी बंस ||८७||


जिन्होंने अपने बाहुबल से पृथ्वी का उपभोग किया है ,जो अग्नि के तेजोमय अंश है ,क्षत्रियों के ऐसे प्रतापी चरों ही अग्नि वंश इस आबू पर्वत पर अवतरित हुए है |

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