Shyari part-02

Wednesday, 4 September 2013

पाथळ अर पीथळ


अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो । 
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो ।

हूं लडयो घणो हूं सहयो घणो 
मेवाडी मान बचावण नै ,
हूं पाछ नही राखी रण में 
बैरया रो खून बहावण में ,

जद याद करू हळदी घाटी नैणा मे रगत उतर आवै ,
सुख दुख रो साथी चेतकडो सूती सी हूक जगा ज्यावै ,

पण आज बिलखतो देखूं हूं 
जद राज कंवर नै रोटी नै ,
तो क्षात्र - धरम नै भूलूं हूं 
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै

मेहलां में छप्पन भोग जका मनवार बिना करता कोनी ,
सोनै री थाळयां नीलम रै बाजोट बिना धरता कोनी ,

अै हाय जका करता पगल्या 
फ़ूला री कंवरी सेजां पर ,
बै आज रूळे भूखा तिसिया 
हिंदवाणै सूरज रा टाबर ,

आ सोच हुई दो टूक तडक राणा री भीं बजर छाती ,
आंख्यां मे आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती ,
पण लिखूं किंयां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां ,
चितौड खडयो है मगरां मे विकराळ भूत सी लियां छियां ,

मैं झुकूं कियां ? है आणा मनै 
कुळ रा केसरिया बानां री ,
मैं बुझूं किंयां ? हूं सेस लपट 
आजादी रै परवानां री ,

पण फ़ेर अमर री बुसक्यां राणा रो हिवडो भर आयो ,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनै समराट सनेसो कैवायो । 
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो सपनूं सो सांचो 
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फ़िर बांच्यो ,

कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो 
कै आज हुयो सूरज सीटळ ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो 
आ सोच हुयो समराट विकळ ,

बस दूत इसारो पा भाज्या पीथळ नै तुरत बुलावण नै ,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै ,

बी वीर बाकुडै पीथळ नै 
रजपूती गौरव भारी हो ,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो 
राणा रो प्रेम पुजारी हो ,

बैरयां रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो ,
राठौड रणां मे रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,

आ बात पातस्या जाणै हो 
घावां पर लूण लगावण नै ,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो ,
पण टूट गयो बीं राणा रो 
तूं भाट बण्यो बिड्दावै हो ,

मैं आज तपस्या धरती रो मेवाडी पाग़ पग़ां मे है ,
अब बात मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां मे है ?

जद पीथळ कागद ले देखी 
राणा री सागी सैनाणी ,
नीवै स्यूं धरती खसक गई 
अंाख्यां मे आयो भर पाणी ,

पण फ़ेर कही ततकाल संभल आ बात सफ़ा ही झूठी है ,
राणा री पाग़ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है ।

ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं 
राणा ने कागद खातर ,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं 
आ बात सही बोल्यो अकबर ,

म्हे आज सुणी है नाहरियो 
स्याळां रे सागे सोवैलो ,
म्हे आज सुणी है सूरजडो 
बादळ री ओटां खोवैलो ,

म्हे आज सुणी है चातकडो 
धरती रो पाणी पीवैलो ,
म्हे आज सुणी है हाथीडो 
कूकर री जूणां जीवैलो ,

म्हे आज सुणी है थकां खसम 
अब रांड हुवेली रजपूती ,
म्हे आज सुणी है म्यानां में 
तलवार रवैली अब सूती ,

तो म्हारो हिवडो कांपै है मूंछयां री मोड मरोड गई,
पीथळ नै राणा लिख भेजो आ बाट कठै तक गिणां सही ?

पीथळ रा आखर पढ़तां ही 
राणा री अंाख्यां लाल हुई ,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं 
नाहर री एक दकाल हुई ,

हूं भूख मरुं हूं प्यास मरुं 
मेवाड धरा आजाद रवै 
हूं घोर उजाडा मे भटकूं 
पण मन में मां री याद रवै ,

हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पडै पण पाघ़ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला ।

पीथळ के खिमता बादळ री 
जो रोकै सूड़ ऊगाळी नै ,
सिंघा री हाथळ सह लेवै 
बा कूख मिली कद स्याळी नै ?

धरती रो पाणी पिवै इसी 
चातग री चूंच बणी कोनी ,
कूकर री जूणां जिवै इसी 
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां मे तलवार थकां 
कुण रांड कवै है रजपूती ?
म्यानां रैै बदळै बैरयां री 
छात्यां मे रेवै ली सूती ,

मेवाड धधकतो अंगारो आंध्यां मे चमचम चमकैलो,
कडखै री उठती तानां पर पग पग खांडो खडकैलो ,
राखो थे मंूछयां एठयोडी 
लोही री नदी बहा दंयूला ,
हूं अथक लडूंला अकबर स्यूं 
उजड्यो मेवाड बसा दयूंला ,

जद राणा रो संदेशो गयो पीथळ री छाती दूणी ही ,
हिंदवाणो सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही ।
ThE UlTiMate FiGhTeRs Of RaJpUtAnA

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