Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-19


बिण ढाला बांको लड़े,
सुणी ज घर-घर वाह |
सिर भेज्यौ धण साथ में,
निरखण हाथां नांह ||९७||

युद्ध में वीर बिना ढाल के ही लड़ रहा है | जिसकी घर-घर में प्रशंसा हो रही है | वीर की पत्नी ने युद्ध में अपने पति के हाथ (पराक्रम) देखने के लिए अपना सिर साथ भेज दिया है |(उदहारण-हाड़ी रानी )|

मूंजी इण धर मोकला,
दानी अण घण तोल |
अरियां धर देवै नहीं,
सिर देवै बिन मोल ||९८||

इस मरुधरा में ऐसे कंजूस बहुत है जो दुश्मन को अपनी धरती किसी कीमत पर नहीं देते व ऐसे दानी भी अनगिनत है जो बिना किसी प्रतिकार के अपना मस्तक युद्ध-क्षेत्र में दान दे देते है |

खलहल नाला खल किया,
बिन पावस किम आज ?
सिर कटियो धर कारणे,
धर रोवै सिर काज ||९९||

बिना ही पावस ऋतू के आज ये नाले खलखल करते कैसे बह उठे है ? यह इसलिए कि वीरों ने धरती के लिए सपने सिर कटा दिए है परिणामत: धरती अपने उन्ही सपूतों के प्रति कृतज्ञता वश रुधिर-धारा के रूप में आंसू बहा रही है ||

कर केसरिया धर रंगी,
आली ! मो भरतार |
सधवा धरणी सह करी,
विधवा परणी नार ||१००||

हे सखी ! मेरे वीर स्वामी ने केसरिया कर धरती को लहू से रंग दिया है | यों उन्होंने इस सारी पृथ्वी को तो सधवा (सुहागन) कर दिया है; परन्तु मुझे विधवा कर दिया है | अर्थात वीर युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हो गया है |

हेली ! देखो आज किम,
अम्बर दिसै आग |
सुरगां पीव सिधावता,
जलद झकोली खाग ||१०१||

हे सखी ! देखो आज आकाश में यह लाली कैसी दिखाई दे रही है ? लगता है मेरे प्रियतम ने स्वर्ग सिधारते हुए मेघ जल में अपना खड्ग धोया है |

आ लाली लख अरस री,
आली, नहीं अबीर |
लपटां जौहर जालगी,
अवनी आभो चीर ||१०२||

आसमान में लाली व उसमे चमकते हुए कणों को देखकर सखी कल्पना करती है कि आकाश में किसी ने अबीर युक्त गुलाल बिखेर दिया है | सखी की इस कल्पना से असहमत होते हुए वीरांगना कहती है -हे सखी ! तू आकाश की लाली को व उसमे चमकने वाले कणों को ठीक प्रकार से देख यह गुलाल अबीर नहीं है | ये तो धरती से उठती जौहर की आकाश को चीरती हुई उठने वाली लपटों का प्रभाव है जिसके कारण आकाश लाल हो गया है व बीच-बीच में चमकने वाली आग की चिंगारियां है न कि अबीर |

हठीलो राजस्थान-18


सूरापण सु-नसों सकड़,
ढील न लागै ढिंग्ग |
पीवै नीं वो डगमगै ,
पीधां बणे अडिग्ग ||११५||

शौर्य का नशा भी बड़ा प्रबल है | जिसके चढ़ने पर व्यक्ति अडिग व चुस्त हो जाता है | जो इस शौर्य के नशे को नहीं पीता वह ही डगमगाता रहता है और जो पी लेता है वह अविचलित हो जाता है |

हियै निराशा न रहै,
मुंजीपण मिट जाय |
सूरापण जिण घट बसै,
झूठ कपट झट जाय ||११६||

जिस हृदय में शौर्य निवास करता है,उस ह्रदय में निराशा व्याप्त नहीं हो सकती है व कृपणता भी विलीन हो जाती है |जिस हृदय में शौर्य निवास करता है ,उससे झूठ व कपट भी स्वत: ही दूर हो जाते है |

जग चालै जिण मारगां,
भड चालै उण नांह |
कठिण भडां सथ चालणों,
विकत भडां री राह ||११७||

संसार जिस मार्ग पर चलता है ,वीर उस मार्ग पर नहीं चलते | वीरों का मार्ग बड़ा विकट होता है अत: उनके साथ चलना बहित कठिन है |

जग अधपत नहै आदरै,
बिसरै जुग बितांह |
सूरां चित भावै सदा ,
गावै नित गीतांह ||११८||

संसार में बड़े बड़े अधिपतियों का कालांतर में कोई आदर नहीं करता | युग बीतने के साथ लोग उन्हें भूल जाते है | परन्तु शूरवीर तो सदा ही लोक-मानस में श्रद्धा से स्मरण किए जाते है तथा उनका यश नित्य गीतों में गूंजता है |

ईस चरण नमतो सदा,
कै कटतो पर काज |
केव्यां आगल किम नमै,
अनमी माथो आज ||११९||

वीर कहता है - मेरा सिर या तो ईश्वर के चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है या फिर दूसरों के हित में कट कर भूमि के चरणों में झुकता है | ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष कैसे झुक सकता है |

आदर सूं जिणों सदा ,
आदर धरती आन |
जिण घर आदर नह रहै ,
वा घर नरक समान ||१२०||

सदैव आदर से जीना ही अच्छा रहता है क्योंकि आदर इस धरती की आन है | जिस धरती पर आदर नहीं होता ,वह धरती नरक समान होती

हठीलो राजस्थान-17


गूद गटककै गोधणयां, हड्ड चटककै स्याल |
बूथ बटककै बैरियाँ, मंडै रण मतवाल ||९४||

जब रण के मतवाले शूरवीर क्रुद्ध होकर युद्ध करते है,तो उनके द्वारा किए गए प्रचंड नर-संहार से युद्ध-भूमि धडों व सिरों से भर जाती है | यहाँ विचरण करने वाली गिधनियाँ तृप्त होकर मांस गटकती है तथा सियार हड्डियाँ चटकते हुए छककर शत्रुओं की बोटियाँ बटकते है |
सीस फुदककै किम सखी, कमध धमककै खाग |
अरि भालै आराण में, रिंझे सिन्धु राग ||९५||

हे सखी ! रण-भूमि में वीर का ये कटा हुआ मस्तक कैसे फुदक रहा है व इसका ये धड किस कारण से तलवार चलाने में समर्थ है ?
सखी उत्तर देती है - यह कटा हुआ सिर उछल-उछल कर युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों को देख रहा है व रण-वाद्यों के द्वारा जो सिन्धु राग गाई जा रही है ,उससे हो रहे वीर रस के संचार से ये धड बिना मस्तक के ही तलवार चलाने में समर्थ है |
सीस धरा धड पागडै, हय खुँदै होदांह |
लोहो नलां , खागां गलां , नाचै कर मोदांह ||९६||

युद्ध करते हुए वीर का मस्तक कट के धरा पर गिर पड़ा किन्तु धड यथावत घोड़े पर सवार है ,पैर पगाडों में है व घोड़े के अगले पैर,हाथी के मस्तक पर जा टिके है | सिर कटे हुए शूरवीर ने होदे में बैठे शत्रु पर तलवार से प्रहार किया है ,तलवार शत्रु की गर्दन पर जाकर लगी है जिससे खून का नाला बह चला है | इससे प्रफुल्लित होकर घोड़े पर सवार वीर का धड प्रसन्नता से नाच रहा है |
नान्हा गीगा-गीगली, जामण, कामण गेह |
भड बाल्या निज हाथ सूं, करतब ऊँचो नेह ||१०६||

जौहर के अवसर पर दूध-मुहें बच्चों,निज जननी तथा अपनी भार्या को अग्नि की लपटों के समर्पित कर वीरों ने यह सिद्ध कर दिया है,कि कर्तव्य प्रेम से भी बड़ा होता है |
कुटम कबिलौ आपरौ , सह पालै संसार |
भड बालै करतब तणों, क्षात्र धर्म बलिहार ||१०७||

अपने परिवार का पालन पोषण तो सारा संसार ही करता है ,परन्तु वीर तो कर्तव्य की वेदी पर अपने परिवार को भी झोंक देता है | निश्चय ही हम इस क्षात्र धर्म पर बलिहारी है |
सूत केसरिया धुज गही, धब केसरिया भेह |
धण केसरिया आग में ,बाली केसर देह ||१०८||

पुत्र ने केशरियां ध्वज ग्रहण किया तथा पति ने केशरिया वेश | उधर वीर पत्नी ने भी अपनी केशर सी काया को केशरिया आग की लपटों में झोंक दिया |

हठीलो राजस्थान-16


सुत गोदी ले धण खड़ी,
जौहर झालां जोर |
झालां हिड़दे धव जलै,
लाली नैणा कोर ||

जौहर के समय वीर नारी अपने पुत्र को लिए जौहर की प्रचंड ज्वाला में कूदने हेतु खड़ी है | उधर उसके वीर पति के हृदय में भी वीरत्व की ज्वाला धधक रही है तथा उसकी आँखों की कोरों में रोष की लालिमा लहक रही है |

दस सर कटतां ढह पड्यो,
धड़ नह लड़ियो धूत |
सिर इक कटियाँ रण रच्यो,
रंग घणा रजपूत ||
दसशीश रावण सिर कटते ही ढह पड़ा | उसका धड़ युद्ध में नहीं लड़ सका | धन्य है वह राजपूत वीर जो एक सिर के कट जाने के बाद भी युद्ध करते रहते है |

बांको सुत लंकेस रो,
सुरपत बाँधण हार |
सिर कटियाँ फिर नह हिल्यो,
रण उठ कियो न वार ||
लंकापति रावण का वीर पुत्र मेघनाथ जिसने देवताओं के राजा इंद्र को भी बंदी लिया था | सिर कटने के बाद वह न तो हिल सका और न ही उठकर वार कर सका |

सिर देवै पर कारणे,
सिर झेलै पर तांण |
बीतां बातां गीतड़ा,
बढ़ बढ़ करै बखाण ||
यहाँ के शूरवीरों को धन्य है जो परकाज हित अपना मस्तक कटा देते है तथा दुसरे के संकट को अपने सिर पर झेल लेते है | कवियों के गीतों व लोककथाओं में ऐसे शूरवीरों की कीर्ति का बढ़-बढ़ कर बखान किया जाता है |

रजवट खूंटो नीमणों,
टूटे नांह हिलंत |
विध बांधी बल-बरत सूं ,
वसुधा देख डिगन्त ||
रजवट (क्षत्रियत्व) वह मजबूत खूंटा है जो न तो हिल सकता है ,न टूट सकता है | इसीलिए विधाता ने इस विचलित होती हुई पृथ्वी को शक्ति की रज्जू (रस्सी) से रजवट के खूंटे से बाँधा है (क्षत्रिय के शासक होने का यही सिद्धांत है)|

सुरावण सकती सकड़,
मेटे विधना मांड |
देय हथेली थाम दे ,
डगमगतौ ब्रह्माण्ड ||
शौर्य में इतनी सामर्थ्य है कि वह विधाता के लेख को भी मिटा सकता है | वह डगमगाते ब्रह्मांड को भी अपनी हथेली लगाकर रोक सकता है |

Mera Desh Ro Raha Hai