Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान-47


हरिया गिर,बन,ढोर,खग,
हरी साख हरखाय |
मन हरिया मिनखांण रा,
बिरहण एक सिवाय ||२८०||


हरे पहाड़,वन,पशु,पक्षी,हरी भरी फसल आज सभी वर्षा के आने से प्रसन्न है | एक विरहणी को छोड़कर सभी मनुष्यों के मन हर्षित हो गए है |

भादरवा बरसो भल,
तौ बरस्यां सरसाय |
धरणी, परणी, धावडी,
जड़ जंगम जंगलाय ||२८१||


भाद्रपद के महीने में हुई बरसात बहुत अच्छी होती है | इससे ही प्रकृति में हरियाली छाती है | धरती ,विवाहित स्त्रियाँ व कन्याओं सहित सभी जड़ व चेतन सरसित हो उठते है |

भादरवै गोगा नमी,
गोगाजी रै थान |
इण धर मेला नित भरै,
गावै तेजो गान ||२८२||


भादवे में महीने में गोगा-नवमी पर गोगाजी के स्थान पर मेला भरता है किन्तु इस धरती पर प्रतिदिन ही मेले भरते रहते है ,जहाँ तेजस्वी लोगों के गीत गाये जाते है |

बिरख बिलुमी बेलड़ी,
तन रंग ढकियो छाय |
ज्यूँ बूढ़ा भरतार पर,
नई नार छा जाय || २८३||


बेलें पेड़ों के चारों और लिपट गई है और अपने रंग-बिरंगे फूलों से उसे ढक लिया है ,वैसे ही ,जैसे कोई नवयौवना अपने वृद्ध पति पर पूरी तरह छा जाती है |

जीमण लासां जुगत सूं,
मिल मिल भीतडलाह |
लुल लुल लेवै लावणी,
गावै गीतडलाह ||२८४||


इस प्रदेश के किसान आवश्यकता पड़ने पर सब मिलकर एक किसान की मदद के लिए काम करते है व उस दिन उसी के यहाँ भोजन करते है जिसको "ल्हास" कहते है | फसल की कटाई (लावणी) के लिए गांव के मित्रगण "ल्हास" पर जाते है ,प्रेम पूर्वक गीत गाते हुए फसल की कटाई करते है व वहीँ पर भोजन करते है |

चढियो मालै छोकरों,
हथ गोपण हथियार |
जीव जलमतां धान में ,
चिड़िया दल भरमार ||२८५||


फसल में दाना पड़ने पर चिड़ियों के असंख्य झुंडों से उसकी रक्षा करने के लिए कृषक पुत्र हाथ में गोफन (जिससे दूर तक पत्थर फेंका जा सकता है) लेकर मचान पर चढ़ बैठा है |

हठीलो राजस्थान-46


चालो खेत सुवावणा,
झिल्ली री झणकार |
बाजरियो झाला दिवै,
मारगियो मनवार ||२७४||



सुहावने खेतों में चलो जहाँ झींगुर की झंकार गूंज रही है | बाजरे के सिट्टे हिल हिल कर संकेतों से बुला रहे है तथा खेत का मार्ग आने की मनुहार कर रहा है |

हींड़ो लूमै होड सूँ,
तीज तणों त्युंहार |
सखियाँ मारै कोरड़ा,
पिव रो नाम पुकार ||२७५||



तीज के त्यौंहार पर सखियाँ होड से झुला झूल रही है तथा एक दूसरे को अपने अपने पति का नामोच्च्चारण कराने हेतु कोड़े मार रही है |

बजै नगारा पीर नभ,
मुख बीजल मुस्कान |
रिम झिम आभै उतरी,
बिरखा बहु समान ||२७६||



आकाश जिसका पीहर है ,वहां गर्जना रूपी नगारे बज रहे है व् जिसकी मुस्कान से बिजली चमकती है ऐसी दुल्हन वर्षा आकाश से रिम-झिम करती हुई धरती पर उतर रही है |

डर मत बिरखा बिनणी,
सासरियो सरताह |
कोमल रज कांटा नथी ,
धरती पग धरताह ||२७७||



हे वर्षा बहू ! तुम धरती पर उतरते हुए डरो नहीं | तुम्हारी ससुराल सब प्रकार से संपन्न है | यहाँ की मिटटी कोमल है और कहीं कांटे नहीं है |

काली कांठल घोर रव,
सज धज बिरखा साज |
जाणे गढ़ गिरनार सूँ ,
उतरी कामण आज ||२७८||



उमड़ते -घुमड़ते काले बादलों के रूप में प्रचंड गर्जना के साथ सज-धज कर वर्षा वधू आई है | ऐसा लगता है ,जैसे गढ़ गिरनार से कोई कामिनी उतरी हो |

मटमैली सासू धरा,
रुखा सूखा केस |
आई बिरखा बिनणी ,
लाई नूतन बेस ||२७९||



पृथ्वी रूपी सास, बिरखा -बिनणी (वर्षा वधू) के आगमन से पूर्व मटमैली और रुक्ष केशों वाली थी | अब वर्षा वधू उसके लिए नया परिधान लायी है |(वर्षा धरती को हरियाली से आच्छादित कर देती है )

हठीलो राजस्थान-45



नभ लहराती बादली,
बीजल रेख बणाय |
ज्यूँ काजलिया चीर पर,
गोटो कोर खिंचाय ||२६८||


आकाश में घुमड़ती हुई बादली के बीच विद्युत रेखा ऐसी दिखाई दे रही है जैसे काले रंग की ओढ़नी पर गोटे की किनारी जड़ी हो |

सरवर पाल सुहावणी,
की सोभा केणीह |
मृग नाचै, लटका करै,
मटका मृग नैणीह ||२६९||


ऐसे सरोवर की सुन्दर पाल की शोभा का कैसे वर्णन किया जा सकता है जहाँ पर वर्षा के बाद मस्त हुए मृग क्रीड़ा करते है व मृगनयनी चंचल स्त्रियाँ जल भरने के लिए आती है |

मोर नाचवै खेत में,
और ढोर मझ कीच |
छम छम करता छोकरा,
नाचै नाडी तीर ||२७०||


खेतों में मोर नाच रहे है तथा कीचड़ में पशु प्रसन्न होकर लोट रहे है | इधर बालक ताल-तलैयों में जल-क्रीड़ा का आनंद ले रहे है |

कुरजां थे आकास में,
कित जावो, की काम ?
इण धर रो संदेसड़ो,
पहुंचावण उण धाम ||२७१||


हे कुरजां ! तुम आकाश में कहाँ तथा किस काम से जा रही हो ? क्या तुम इस धरती से किसी विरहणी का सन्देश उस स्थान उसके प्रियतम के पास पहुँचाने के लिए जा रही हो |

बूंदा साथै बरसिया ,
हाथ छुवां मुरझाय |
मखमल जिम मिमोलिया ,
वसुधा रूप बढ़ाय ||२७२||


वर्षा की बूंदों के साथ बरसने वाली तथा हाथ के छू देने भर से मुरझा जाने वाली मखमल-सी मुलायम वीर-बहती (सावन की तीज) पृथ्वी की शोभा में चार चाँद लगा रही है |

दल बादल सा उमडिया,
आथूणा इक साथ |
लांघण राखो टिड्डीयां,
बाँधण आवै नाथ ||२७३||


पश्चिम दिशा से टिड्डियों का दल-बादल सा उमड़ता हुआ आ रहा है | हे टिड्डियो ! तुम थोड़ी देर लंघन करलो | तुम्हे बांधने (अभिमंत्रित करने) हेतु नाथ (जोगी) आ रहा है |(नोट-राजस्थान में टिड्डी दल आने पर जोगी उसे अभिमंत्रित कर खेती को विनाश से बचा लेते थे )

हठीलो राजस्थान-44


गरजत बरजत सोच दिल,
लुक छिप दाव लड़ंत |
इण धरती पर आवतां,
इन्दर डरपै अन्त ||२६२||

यहाँ (राजस्थान में) बादल लुकते छिपते ही कभी कभार बरसते है | मानों यहाँ आते हुए इंद्र को भी डर लग रहा है |

कांसी लीलो रंग करयो,
नाड़ी तातो नीर |
बादल बासी रात रा,
धरलै कामण धीर ||२६३||

नमी में कांसी के बर्तनों पर नील प्रकट होने लगी है , तालाबों का जल भी गर्म है व रात के बादल सुबह तक विद्यमान है | हे पत्नी ! धैर्य रखो, ये वर्षा के लक्षण है | अत: वर्षा अवश्य आएगी |

नाग चढ्यो तरु ऊपरै,
सारस गण असमान |
दौड़े बादल पछिम दिस,
बहसी जल घमसान ||२६४||

सर्प पेड़ पर चढ़ जाते है व सारस भी बार-बार उड़ते है | पश्चिम दिशा की और से बादल दौड़े आ रहे है | अत:जबरदस्त बारिश होगी |

बादल आया बरसता ,
चहुँ दिस मोटो चाव |
पंखी नाचै, नर हंसे,
खेलण लागा दाव ||२६५||

प्रचुर जलवृष्टि करते बादलों को आया देखकर चतुर्दिक उल्लास छा गया है | पक्षी नाचने लगे है तथा मनुष्य हर्षित हो क्रीड़ा करने लगे है |

बरसै रिन्झिम बादली,
हरसै भूतल जीव |
सरसै जंगल झाड़ सह,
तरसै कामण पीव ||२६६||

जब बादली रिमझिम बरसाती है तो भूतल के सभी जीव हर्षित हो जाते है | जंगल के सभी पेड़ हरे-भरे हो जाते है तथा कमनियां प्रिय-मिलन के लिए व्याकुल हो उठती है |

पवन झकोलै बादली,
बीजल बिच मुसकाय |
रजनी पर दो चीर वा,
साँची बात बताय ||२६७||

पवन के झकझोरने से बादली के बीच बिजली मुस्कराने लगी है | एसा प्रतीत होता है मानो रात्री के परदे को चीरकर वह उसके मन की बात बता रही है |

Mera Desh Ro Raha Hai