Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-20


मुरछित सुभड़ भडक्कियो,
सिन्धु कान सुणीह |
जाणं उकलता तेल में,
पाणी बूंद पडिह ||१०३||

युद्ध में घावों से घायल हुआ व् अचेत योद्धा भी विरोतेजनी सिन्धु राग सुनते ही सहसा भड़क उठा,मानो खौलते तेल में पानी की बूंद पड़ गई हो |

बाजां मांगल बाजतां,
हेली हलचल काय |
कलपै जीवण कायरां,
सूरां समर सजाय ||१०४||

हे सखी ! रण के मंगल वाद्य बजते ही यह कैसी हलचल हो गई है ? स्पष्ट ही इसे सुन जहाँ कायरों का कलेजा कांप उठता है वहां शूरवीरों ने रण का साज सजा लिया है |

हेली धव हाकल सुणों,
टूट्या गढ़ तालाह |
खैंच खचाखच खग बहै,
लोही परनालाह ||१०५||

हे सखी ! मेरे वीर स्वामी की ललकार सुनों ,जिसके श्रवण मात्र से ही गढ़ के ताले टूट गए है | शत्रु दल में उनका खड्ग खचाखच चल रहा है ,जिससे रुधिर के नाले बहने लगे है |

आंथै नित आकास में,
राहू गरसै आज |
हिन्दू-रवि आंथ्यो नहीं,
तपियौ हेक समान ||१२१||

सूर्य भी प्रतिदिन आकाश में अस्त होता है व कभी कभी राहू-केतु से भी ग्रसित होता है ,लेकिन हिन्दुवा सूरज महाराणा प्रताप रूपी सूर्य कभी अस्त नहीं हुआ व जीवन पर्यंत एक समान तेजस्वी बना रहा |

घर घोड़ो, खग कामणी,
हियो हाथ निज मीत |
सेलां बाटी सेकणी,
स्याम धरम रण नीत ||१२२||

इसमें वीर पुरुष के लक्षण बताये गए है -
घोडा ही उसका घर है ,तलवार ही उसकी पत्नी है | हृदय और हाथ ही उसके मित्र है ,वह अश्वारूढ़ हुआ भालों की नोक से ही बाटी सेंकता है ,तथा स्वामी-धर्म को ही अपनी युद्ध-नीति समझता है |

जलम्यो केवल एक बर,
परणी एकज नार |
लडियो, मरियो कौल पर,
इक भड दो दो बार ||१२३ ||

उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया तथा एक ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ |
आईये आज परिचित होते है उस बांके वीर बल्लू चंपावत से जिसने एक बार वीर गति प्राप्त करने के बावजूद भी अपने दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध क्षेत्र में लौट आया और दुबारा लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की |

हठीलो राजस्थान-19


बिण ढाला बांको लड़े,
सुणी ज घर-घर वाह |
सिर भेज्यौ धण साथ में,
निरखण हाथां नांह ||९७||

युद्ध में वीर बिना ढाल के ही लड़ रहा है | जिसकी घर-घर में प्रशंसा हो रही है | वीर की पत्नी ने युद्ध में अपने पति के हाथ (पराक्रम) देखने के लिए अपना सिर साथ भेज दिया है |(उदहारण-हाड़ी रानी )|

मूंजी इण धर मोकला,
दानी अण घण तोल |
अरियां धर देवै नहीं,
सिर देवै बिन मोल ||९८||

इस मरुधरा में ऐसे कंजूस बहुत है जो दुश्मन को अपनी धरती किसी कीमत पर नहीं देते व ऐसे दानी भी अनगिनत है जो बिना किसी प्रतिकार के अपना मस्तक युद्ध-क्षेत्र में दान दे देते है |

खलहल नाला खल किया,
बिन पावस किम आज ?
सिर कटियो धर कारणे,
धर रोवै सिर काज ||९९||

बिना ही पावस ऋतू के आज ये नाले खलखल करते कैसे बह उठे है ? यह इसलिए कि वीरों ने धरती के लिए सपने सिर कटा दिए है परिणामत: धरती अपने उन्ही सपूतों के प्रति कृतज्ञता वश रुधिर-धारा के रूप में आंसू बहा रही है ||

कर केसरिया धर रंगी,
आली ! मो भरतार |
सधवा धरणी सह करी,
विधवा परणी नार ||१००||

हे सखी ! मेरे वीर स्वामी ने केसरिया कर धरती को लहू से रंग दिया है | यों उन्होंने इस सारी पृथ्वी को तो सधवा (सुहागन) कर दिया है; परन्तु मुझे विधवा कर दिया है | अर्थात वीर युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हो गया है |

हेली ! देखो आज किम,
अम्बर दिसै आग |
सुरगां पीव सिधावता,
जलद झकोली खाग ||१०१||

हे सखी ! देखो आज आकाश में यह लाली कैसी दिखाई दे रही है ? लगता है मेरे प्रियतम ने स्वर्ग सिधारते हुए मेघ जल में अपना खड्ग धोया है |

आ लाली लख अरस री,
आली, नहीं अबीर |
लपटां जौहर जालगी,
अवनी आभो चीर ||१०२||

आसमान में लाली व उसमे चमकते हुए कणों को देखकर सखी कल्पना करती है कि आकाश में किसी ने अबीर युक्त गुलाल बिखेर दिया है | सखी की इस कल्पना से असहमत होते हुए वीरांगना कहती है -हे सखी ! तू आकाश की लाली को व उसमे चमकने वाले कणों को ठीक प्रकार से देख यह गुलाल अबीर नहीं है | ये तो धरती से उठती जौहर की आकाश को चीरती हुई उठने वाली लपटों का प्रभाव है जिसके कारण आकाश लाल हो गया है व बीच-बीच में चमकने वाली आग की चिंगारियां है न कि अबीर |

हठीलो राजस्थान-18


सूरापण सु-नसों सकड़,
ढील न लागै ढिंग्ग |
पीवै नीं वो डगमगै ,
पीधां बणे अडिग्ग ||११५||

शौर्य का नशा भी बड़ा प्रबल है | जिसके चढ़ने पर व्यक्ति अडिग व चुस्त हो जाता है | जो इस शौर्य के नशे को नहीं पीता वह ही डगमगाता रहता है और जो पी लेता है वह अविचलित हो जाता है |

हियै निराशा न रहै,
मुंजीपण मिट जाय |
सूरापण जिण घट बसै,
झूठ कपट झट जाय ||११६||

जिस हृदय में शौर्य निवास करता है,उस ह्रदय में निराशा व्याप्त नहीं हो सकती है व कृपणता भी विलीन हो जाती है |जिस हृदय में शौर्य निवास करता है ,उससे झूठ व कपट भी स्वत: ही दूर हो जाते है |

जग चालै जिण मारगां,
भड चालै उण नांह |
कठिण भडां सथ चालणों,
विकत भडां री राह ||११७||

संसार जिस मार्ग पर चलता है ,वीर उस मार्ग पर नहीं चलते | वीरों का मार्ग बड़ा विकट होता है अत: उनके साथ चलना बहित कठिन है |

जग अधपत नहै आदरै,
बिसरै जुग बितांह |
सूरां चित भावै सदा ,
गावै नित गीतांह ||११८||

संसार में बड़े बड़े अधिपतियों का कालांतर में कोई आदर नहीं करता | युग बीतने के साथ लोग उन्हें भूल जाते है | परन्तु शूरवीर तो सदा ही लोक-मानस में श्रद्धा से स्मरण किए जाते है तथा उनका यश नित्य गीतों में गूंजता है |

ईस चरण नमतो सदा,
कै कटतो पर काज |
केव्यां आगल किम नमै,
अनमी माथो आज ||११९||

वीर कहता है - मेरा सिर या तो ईश्वर के चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है या फिर दूसरों के हित में कट कर भूमि के चरणों में झुकता है | ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष कैसे झुक सकता है |

आदर सूं जिणों सदा ,
आदर धरती आन |
जिण घर आदर नह रहै ,
वा घर नरक समान ||१२०||

सदैव आदर से जीना ही अच्छा रहता है क्योंकि आदर इस धरती की आन है | जिस धरती पर आदर नहीं होता ,वह धरती नरक समान होती

हठीलो राजस्थान-17


गूद गटककै गोधणयां, हड्ड चटककै स्याल |
बूथ बटककै बैरियाँ, मंडै रण मतवाल ||९४||

जब रण के मतवाले शूरवीर क्रुद्ध होकर युद्ध करते है,तो उनके द्वारा किए गए प्रचंड नर-संहार से युद्ध-भूमि धडों व सिरों से भर जाती है | यहाँ विचरण करने वाली गिधनियाँ तृप्त होकर मांस गटकती है तथा सियार हड्डियाँ चटकते हुए छककर शत्रुओं की बोटियाँ बटकते है |
सीस फुदककै किम सखी, कमध धमककै खाग |
अरि भालै आराण में, रिंझे सिन्धु राग ||९५||

हे सखी ! रण-भूमि में वीर का ये कटा हुआ मस्तक कैसे फुदक रहा है व इसका ये धड किस कारण से तलवार चलाने में समर्थ है ?
सखी उत्तर देती है - यह कटा हुआ सिर उछल-उछल कर युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों को देख रहा है व रण-वाद्यों के द्वारा जो सिन्धु राग गाई जा रही है ,उससे हो रहे वीर रस के संचार से ये धड बिना मस्तक के ही तलवार चलाने में समर्थ है |
सीस धरा धड पागडै, हय खुँदै होदांह |
लोहो नलां , खागां गलां , नाचै कर मोदांह ||९६||

युद्ध करते हुए वीर का मस्तक कट के धरा पर गिर पड़ा किन्तु धड यथावत घोड़े पर सवार है ,पैर पगाडों में है व घोड़े के अगले पैर,हाथी के मस्तक पर जा टिके है | सिर कटे हुए शूरवीर ने होदे में बैठे शत्रु पर तलवार से प्रहार किया है ,तलवार शत्रु की गर्दन पर जाकर लगी है जिससे खून का नाला बह चला है | इससे प्रफुल्लित होकर घोड़े पर सवार वीर का धड प्रसन्नता से नाच रहा है |
नान्हा गीगा-गीगली, जामण, कामण गेह |
भड बाल्या निज हाथ सूं, करतब ऊँचो नेह ||१०६||

जौहर के अवसर पर दूध-मुहें बच्चों,निज जननी तथा अपनी भार्या को अग्नि की लपटों के समर्पित कर वीरों ने यह सिद्ध कर दिया है,कि कर्तव्य प्रेम से भी बड़ा होता है |
कुटम कबिलौ आपरौ , सह पालै संसार |
भड बालै करतब तणों, क्षात्र धर्म बलिहार ||१०७||

अपने परिवार का पालन पोषण तो सारा संसार ही करता है ,परन्तु वीर तो कर्तव्य की वेदी पर अपने परिवार को भी झोंक देता है | निश्चय ही हम इस क्षात्र धर्म पर बलिहारी है |
सूत केसरिया धुज गही, धब केसरिया भेह |
धण केसरिया आग में ,बाली केसर देह ||१०८||

पुत्र ने केशरियां ध्वज ग्रहण किया तथा पति ने केशरिया वेश | उधर वीर पत्नी ने भी अपनी केशर सी काया को केशरिया आग की लपटों में झोंक दिया |

Mera Desh Ro Raha Hai