Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-16


सुत गोदी ले धण खड़ी,
जौहर झालां जोर |
झालां हिड़दे धव जलै,
लाली नैणा कोर ||

जौहर के समय वीर नारी अपने पुत्र को लिए जौहर की प्रचंड ज्वाला में कूदने हेतु खड़ी है | उधर उसके वीर पति के हृदय में भी वीरत्व की ज्वाला धधक रही है तथा उसकी आँखों की कोरों में रोष की लालिमा लहक रही है |

दस सर कटतां ढह पड्यो,
धड़ नह लड़ियो धूत |
सिर इक कटियाँ रण रच्यो,
रंग घणा रजपूत ||
दसशीश रावण सिर कटते ही ढह पड़ा | उसका धड़ युद्ध में नहीं लड़ सका | धन्य है वह राजपूत वीर जो एक सिर के कट जाने के बाद भी युद्ध करते रहते है |

बांको सुत लंकेस रो,
सुरपत बाँधण हार |
सिर कटियाँ फिर नह हिल्यो,
रण उठ कियो न वार ||
लंकापति रावण का वीर पुत्र मेघनाथ जिसने देवताओं के राजा इंद्र को भी बंदी लिया था | सिर कटने के बाद वह न तो हिल सका और न ही उठकर वार कर सका |

सिर देवै पर कारणे,
सिर झेलै पर तांण |
बीतां बातां गीतड़ा,
बढ़ बढ़ करै बखाण ||
यहाँ के शूरवीरों को धन्य है जो परकाज हित अपना मस्तक कटा देते है तथा दुसरे के संकट को अपने सिर पर झेल लेते है | कवियों के गीतों व लोककथाओं में ऐसे शूरवीरों की कीर्ति का बढ़-बढ़ कर बखान किया जाता है |

रजवट खूंटो नीमणों,
टूटे नांह हिलंत |
विध बांधी बल-बरत सूं ,
वसुधा देख डिगन्त ||
रजवट (क्षत्रियत्व) वह मजबूत खूंटा है जो न तो हिल सकता है ,न टूट सकता है | इसीलिए विधाता ने इस विचलित होती हुई पृथ्वी को शक्ति की रज्जू (रस्सी) से रजवट के खूंटे से बाँधा है (क्षत्रिय के शासक होने का यही सिद्धांत है)|

सुरावण सकती सकड़,
मेटे विधना मांड |
देय हथेली थाम दे ,
डगमगतौ ब्रह्माण्ड ||
शौर्य में इतनी सामर्थ्य है कि वह विधाता के लेख को भी मिटा सकता है | वह डगमगाते ब्रह्मांड को भी अपनी हथेली लगाकर रोक सकता है |

हठीलो राजस्थान-15


नर चंगा निपजै घणा,
घणा थान देवात |
दिल्ली सामी ढाल ज्यूँ ,
धरा धींग मेवात ||८८||

जिस मेवात की वीर-भूमि में उत्कृष्ट वीर पैदा होते है ,जहाँ अनेक देवालय है तथा जो दिल्ली के आक्रान्ताओं के लिए ढाल स्वरूप रही है ; ऐसी यह प्रबल और प्रचंड मेवात की धरती है |

कांपै धर काबुल तणी,
पतशाही पलटाय |
आंटीला आमेर री,
दिल्ली दाद दिराय ||८९||

जिसके प्रताप से काबुल की धरती कांपती है तथा जो बादशाही को पलटने में समर्थ है,इस प्रकार के गौरवशाली आमेर की महिमा को दिल्ली भी स्वीकार करती है |

सरवर तरवर घाटियाँ
कोयल केकी टेर |
झर झरता झरणा झरै,
आछी धर आमेर ||९०||

जहाँ तालाबों,पेड़ों व घाटियों में कोयल व मोरों की ध्वनी सुनाई देती है तथा जहाँ पर झर-झर करते निर्झर झरते है ,आमेर की भूमि ऐसी सुहावनी है |

गंधी फूल गुलाब ज्यूँ,
उर मुरधर उद्याण |
मीठा बोलण मानवी,
जीवण सुख जोधांण ||९१||

मरुधरा का हृदय स्वरूप जोधपुर , उद्यान में खिले हुए सुगन्धित गुलाब के फूल के सामान है | यहाँ के लोग मीठी बोली बोलने वाले है अत: जीवन का वास्तविक सुख यहीं प्राप्त होता है |

उतरी विध उदयांण में ,
साज सुरंगों भेस |
दीलां बिच आछौ फबै,
झीलां वालो देस ||९२||

रेतीले राजस्थान के बीच झीलों वाला प्रदेश मेवाड़ ऐसे शोभायमान हो रहा है मानों विधाता श्रंगार करके किसी उद्यान अवतरित हो गई हो |

गाथा भल सुभटा नरां ,
पेच कसूमल पाग |
साहित वीरा रस सदां,
रागां सिन्धु राग ||९३||

जहाँ शूरवीर,सुभटों की गाथाएं गाई जाती हो,कसूमल पाग के पेच कसे जाते है,वीर रस से ओतप्रेत साहित्य का सृजन होता है तथा वीरों को जोश दिलाने वाला सिन्धु राग गाया जाता है | ऐसी यह मरुभूमि धन्य है |

हठीलो राजस्थान-14



होतो नह मेवाड़ तौ,
होती नह हिन्दवाण |
खान्ड़ो कदै न खडकतौ,
भारत छिपतो भाण ||८२||


यदि मेवाड़ नहीं होता तो कभी युद्ध भी नहीं होता व हिंदुत्व भी रक्षित नहीं होता; व इस प्रकार भारत का सूर्य भी अस्त हो जाता है |

बागड़ धर बैसाख में,
आम घणेरा आय |
चावल निपजै चाव सूं,
सुराई सजलाय ||८३||


बागड़ की इस धरती में बैसाख मॉस में आम बहुतायत से होते है | इस प्रदेश के शूरवीरों की वीरता की पांण से भूमि सजल हो गई है इसलिए यहाँ चावल भी बहुतायत से पैदा होता है |

अमल धरा पर उपजै,
चम्मल रौ परताप |
संबल दुखियां दीं री,
हाडौती बल आप ||८४||


हाडौती की धरती पर अमल तो चम्बल नदी के प्रताप से उत्पन्न होता है | किन्तु दीन दुखी लोगों को आश्रय तो हाडौती की यह धरती स्वयं अपने ही बल पर देती है |

सिर ओही लूंठी धरा,
रोही लूंठी ख़ास |
वा नर-सिंघा आसरो ,
(
आ) सिंघा रो रहवास ||८५||


सिरोही की भूमि व जंगल दोनों ही बलवान है | एक में नर-सिंह व दुसरे में वन-सिंह निवास करते है |

कहसी भेद सु सकल जन,
सिर धरियौ जिण ताज |
जो रहसी अजमेर पर,
करसी भारत राज ||८६||


सभी लोग यही मर्म की बात कहेंगे कि जो शासक सिर पर मुकुट धारण कर अजमेर पर शासन करेगा वही भारत पर पर भी राज्य करेगा | (राजस्थान में यह किवंदती प्रचलित है कि अजमेर के शासकों का ही दिल्ली पर पुन: आधिपत्य होगा) |

वसुधा भोगी बाहुबल,
अगनी तेजस अंस |
आबू पर अवतारिया,
चारुं अगनी बंस ||८७||


जिन्होंने अपने बाहुबल से पृथ्वी का उपभोग किया है ,जो अग्नि के तेजोमय अंश है ,क्षत्रियों के ऐसे प्रतापी चरों ही अग्नि वंश इस आबू पर्वत पर अवतरित हुए है |

हठीलो राजस्थान-13



रगत बहायौ रोसतां,
रंगी धर, फण सेस |
दिल्ली-जड़ ढिल्ली करी,
मारू मुरधर देस ||७६||

मरुधर देश राजस्थान ने जब क्रोध किया ,तो रक्त बह उठा जिसने शेषनाग के फण पर टिकी धरती रंग गई और दिल्ली की जड़े ढीली हो गई | अर्थात दिल्ली के शासकों को भी विचलित कर दिया |

सूरां सतियाँ सेहरो,
सेखा धरती सान |
तो माटी में निपजै,
बढ़ बढ़ नर बलवान ||७७||

यह शान वाली शेखावाटी की धरा वीरों सतियों का सेहरा है | इस धरती पर एक से एक महान वीर पैदा होते है |

धरती आ ढुंढ़ाड़ री,
दिल्ली हन्दी ढाल |
भुजबल इण रै आसरै,
नित नित देस निहाल ||७८||

ढुंढ़ाड़ (जयपुर,आमेर राज्य) की यह धरती सदा दिल्ली की रक्षक रही है | इसके बल के भरोसे ही देश हमेशा कृतार्थ व सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रहा है |

धरती आ जैसाण री,
बरती कदै न और |
पाणी जठे पातळ में,
नारी नैणा कौर ||७९||

जैसलमेर की वीर भोग्या वसुंधरा को कभी भी कोई आक्रान्ता अधिकृत नहीं कर सका | इस क्षेत्र की विशेषता है कि यहाँ पर पानी या तो पाताल में है या नारी के नेत्रों में |

सूर,धनी, चंगों मनां,
व्हालो, नेह विसेस |
देस विदेसां जाणसी,
जांगल देस हमेस ||८०||

जहाँ शूरवीर,धनी व निर्दोष मन वाले तथा विशेष स्नेही लोग निवास करते है, ऐसा बीकानेर का क्षेत्र (जांगल देश) देश व विदेशों में सर्वत्र विख्यात है |

करता बांटी कायमी,
राजपूती एक सत्थ |
हाजर एक मेवाड़ जद,
बिजां लगी न हत्थ ||८१||

विधाता ने दृढ़ता और वीरता एक साथ ही बांटी थी | उस समय केवल मेवाड़ ही वहां उपस्थित था | इसलिए अन्य किसी को वीरता व 

Mera Desh Ro Raha Hai