Shyari part-02

Wednesday, 28 January 2015

Khoya Desh (खोया देश)

कहा खो गया इस देश का इतिहास,
कहा खो गया इस देश का संस्कार,
कहा खो गया इस देश का स्वाभिमान,
कहा खो गया इस देश का युवा,
कहा खो गया इस देश का आक्रोश,
कहा खो गया इस देश का सम्मान,
कहा खो गये इस देश के मार्गदर्शन,
कहा खो गये इस देश के रक्षक,
कहा खो गये इस देश के अमर शहीद,
कहा खो गया इस देश के क्रन्तिकारी,
क्या बन गया है ये अब मुर्दो का घर,
या कोई है इंसान इन मुर्दा घर में जो बतलाये मुझे ये सब।

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Sunday, 25 January 2015

Money (पैसा)


चंद सिक्को की खनक है ये पैसा,
खुद की ही कीमत है ये पैसा,
आँखो की चमक है ये पैसा,
किसी की मेहनत है ये पैसा,
जिंदगी जीने का जरिया है ये पैसा,
कभी  रिश्तों की मिठास तो कभी कडवाहट है ये पैसा,
किसी के दूर होने की वजह है ये पैसा,
अजनबियों को पास बुलाने का जरिया है ये पैसा,
एक नशा है ये पैसा,
पर जिंदगी की जरूरत है ये पैसा,
हाय रे पैसा हाय रे पैसा.....
कैसा है ये पैसा रे पैसा......
सबको नाच नचाये ये पैसा,
हाय रे पैसा हाय रे पैसा.....

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Saturday, 24 January 2015

Ek Tamanna (एक तमन्ना)



एक तमन्ना थी इस दिल की तमन्ना बन के रह गई।
सोचा था जाउगा मैं भी  दूर आसमान के किनारे,
जाना था जहाँ वो किनारे कही खो गए ,
बस छाई है तन्हाई इस आसमान मे
ना जाने वो लम्हे कहा बीत गये ।
मन तो एक पंछी है जग की  बैडियो को क्या जाने।
एक तमन्ना थी  इस दिल की  तमन्ना बनके रह गई ।
आज एक उत्साह था, उमंग थी, तरंग थी इस मन मे,
पर ना जाने क्यों होसलो की उड़ान नही भर पाया ।
कुछ तो है, कहि तो है,
एक कसक है मन मे,
ना जाने कब ये पूरी होगी।
एक तमन्ना है इस दिल की तमन्ना बन के रह गई ।
By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Sunday, 11 January 2015

Jobless (बेरोजगारी)



बेरोजगारी, बेरोजगारी, बेरोजगारी.......
किताबो के  खाली पन्ने है बेरोजगारी 
भागती इस दुनिया में एक रूकावट है बेरोजगारी
हुनरमंद हाथो की बेकरी है बेरोजगारी 
किसी शहर की सुनसान गली है बेरोजगारी 
लोगो की भीड़ है बेरोजगारी 
 खुद को खोने का दर्द है बेरोजगारी 
बड़ी जालिम है बेरोजगारी, पर आज की हकीकत है बेरोजगारी 
बेरोजगारी, बेरोजगारी, बेरोजगारी.......


By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Monday, 5 January 2015

Jindgi (जिंदगी)



जिंदगी की राहे भी बहुत है 
जिंदगी के सितम भी बहुत है
जिंदगी मे हसने और रोने के बहाने भी बहुत है
जिंदगी के इस राह मे काफिले भी बहुत है
जिंदगी के इस जहा मे तुम अपनी राह बनाये चलना
ये जिंदगी है मेरे दोस्त 
थोड़ी गमो की फुहार फिर खुशियो की बारिश है
जिंदगी की इस जंग मे खुद को तुम जमाये रखना 
दुनिया की इस भीड़ मे अपनों का साथ बनाये रखना 
मिलेगे लोग बहुत पर उनको परख कर अपनाना 
पर जिंदगी के इस जहाँ मे किसी को दिल मे बसाये रखना

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Sunday, 4 January 2015

Yuva Bharat (युवा भारत)


आजाद भारत की जवाँ तस्वीर है हम ,
उचाईयो को छूने की ताकत है हम ,
हर मुश्किल को सहने की ताकत है हम ,
बुलंद भारत की जवाँ तस्वीर है हम ,
सहे है जुल्मो सितम अनेको बार ,
पर उस पर भी उठ खड़े होने की ताकत है हम ,
आज आया है वो क्षण गौरव का ,
जो दिखलाये हमारी ताकत सबको ,
इस क्षण को भर अपने जहन मे , 
हम फिर चल दिए छूने नई उचाईयो को 
जय हिन्द
भारत माता की जय 

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur




गम के पास तलवार, मैं उम्मीद की ढाल
लिए
बैठा हूँ..!
ऐ जिंदगी ! तेरी हर चाल के लिए मैं एक
चाल
लिए बैठा हूँ..!!
लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख -
मिचोली का..!
मिलेगी कामयाबी हौसला कमाल लिए
बैठा हूँ..!!
चल मान लिया दो-चार दिन नहीं मेरे
मुताबिक..!
गिरेबान में अपने सुनहरे साल लिए
बैठा हूँ..!!
ये गहराइयाँ, ये लहरें, ये तूफाँ, तुम्हे
मुबारक..!
मुझे क्या फिक्र मैं कश्ती बेमिसाल लिए
बैठा हूँ...!!
सुप्रभात

जागो उठो


जागो उठो बढ़ो ये वक़्त तुम्हारा है, और तुम इसके वाहक,
बढ़ाओ कदम से कदम थामे एक दूजै का हाथ ,
एक आवाज में कर दो शंख्नाद इस नए युग का, 
हो उची आवाज तुम्हारी की सत्ता के गलियारे कापै, 
तुम्हे मई है वो आग जो पत्थर को भी पिघला सके ,
तो ये शीर्ष सिहासन पर बैठे ये नेता क्या है ...?
आज आग है इस देश युवा,
जो है फोलादी सीनै वाला,
ना वो कभी कैसे से डरा ,
ना अपने मार्ग से भटका है,
दृढ है प्रतिज्ञा हमारी की लायेगे वो भारतवर्ष जो था कभी सोने की चिड़िया 

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

MAA माँ



must read....

आधी रात को बहुत बारिश
हो रही थी।
अजय और उसकी बीवी प्रिया एक मित्र
के यहाँ पर्व मनाकर अपने गाडी से
घर वापस लौट रहे थे।
काफी रात हो चुकी थी ।
और बारिश
की वजह से अजय बहुत
धीमी गती से
गाड़ी चला रहा था।
तभी अचानक बिजली गिर गई।
बिजली के
रोशनी मे अजय को गाड़ी के सामने कुछ
दिखाई दिया
तो उसने गाड़ी रोक दी।
गाड़ी रुक ने पर उसकी बिवी ने
कहा क्या हूवा गाड़ी क्यों रोक दी?
अजय ने आगे कि ओर इशारा किया।
प्रिया ने आगे देखा तो वो डर गयी।
क्यों की
गाड़ी के सामने एक औरत
खड़ी थी।
वो औरत गाड़ी के पास आयी।
और हाथ से गाड़ी का शीशा नीचे
करने का इशारा करने लगी।
अजय की बीवी प्रिया काफी डर
गयी थी।
उसने अजय को गाडी चलाने को कहा।
लेकिन गाड़ी भी स्टार्ट नही हुईं।
गाड़ी के बाहर खडी औरत बारिश
की वजह से
भीग गयी थी। वो हाथ जोडकर
गाड़ी का शिशा निचे करने
का इशारा कर रही थी।
अजय को लगा कि वो औरत किसी मुसीबत मे
है। इसलिए उसने गाड़ी का शिशा निचे
किया।
वो औरत हाथ जोडकर बोली 'भाई साहब
मेरी मदत किजीऐ।
तेज बारिश कि वजह से मेरे
गाड़ी का अॅक्सीटेंड हुआ है।
मेरी गाड़ी रस्ते के निचे गीर
गयी है।
उसमें मेरा छोटा बच्चा है।प्लिज
उसे बचाईये।
अजय गाड़ी से उतरा और उस औरत के
पिछे गया।
उस औरत की गाड़ी रस्ते के
काफी निचे
गिर गयी थी।
अजय निचे उतरकर उस गाडी मे से
रो रहे उसके बच्चे को बाहर निकाला।
फिर अजय को लगा की ड्रायवर
की सीट पर
भी कोई है।जब अजय ने ड्रायव्हर
की सीट पर देखा तो उसके होश उड गये।
क्योंकी ड्रायव्हर के सीट पर
वही औरत खून से लथपत
मरी पडी थी।
अजय को अब सब समझ मे आया।
वो बच्चे को लेकर अपने गाड़ी के पास
आया।
बच्चे अपने बीवी प्रिया के पास
दिया।
उसकी बीवी बोली 'वो औरत
कहा है?'वह
कौन थीं? '
अजय बोला
.
'वो एक माँ थी।
.
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शक्तिशाली शेर


एक बार औरंगजेब के दरबार में एक

शिकारी जंगल से
पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाया ! लोहे के
पिंजरे
में बंद
शेर बार-बार दहाड़ रहा था ! बादशाह
कहता था... इससे
बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता !
दरबारियों ने
हाँ में हाँ मिलायी.. किन्तु वहाँ मौजूद
राजा यसवंत सिंह
जी ने कहा - इससे भी अधिक
शक्तिशाली शेर मेरे
पास है !
क्रूर एवं अधर्मी औरंगजेब को बड़ा क्रोध
हुआ ! उसने
कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने को छोडो..
यदि तुम्हारा शेर हार
गया तो तुम्हारा सर
काट
लिया जायेगा ...... !
दुसरे दिन किले के मैदान में
दो शेरों का मुकाबला देखने
बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी ! औरंगजेब
बादशाह
भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन पर
बैठ
गया !
राजा यशवंत सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र
पृथ्वी सिंह
के
साथ आये ! उन्हें देखकर बादशाह ने पूछा--
आपका शेर
कहाँ है ? यशवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर
अपने साथ
लाया हूँ ! आप केवल लडाई
की आज्ञा दीजिये !
बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर को लोहे के
बड़े
पिंजड़े में
छोड़ दिया गया ! यशवंत सिंह ने अपने पुत्र
को उस
पिंजड़े
में घुस जाने को कहा ! बादशाह एवं वहां के
लोग
हक्के-
बक्के रह गए ! किन्तु दस वर्ष का निर्भीक
बालक
पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके हँसते-
हँसते शेर
के
पिंजड़े में घुस गया ! शेर ने पृथ्वी सिंह
की ओर
देखा ! उस
तेजस्वी बालक के नेत्रों में देखते ही एकबार
तो वह
पूंछ
दबाकर पीछे हट गया.. लेकिन मुस्लिम
सैनिकों द्वारा भाले
की नोक से उकसाए जाने पर शेर क्रोध में
दहाड़
मारकर
पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा ! वार बचा कर
वीर बालक
एक
ओर हटा और अपनी तलवार खींच ली ! पुत्र
को तलवार
निकालते हुए देखकर यशवंत सिंह ने
पुकारा - बेटा,
तू यह
क्या करता है ? शेर के पास तलवार है
क्या जो तू
उसपर
तलवार चलाएगा ? यह हमारे हिन्दू-धर्म
की शिक्षाओं के
विपरीत है और धर्मयुद्ध नहीं है !
पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने
तलवार फेंक
दी और
निहत्था ही शेर पर टूट पड़ा ! अंतहीन से
दिखने
वाले एक
लम्बे संघर्ष के बाद आख़िरकार उस छोटे से
बालक ने
शेर
का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर पूरे
शरीर
को चीर
दो टुकड़े कर फेंक दिया ! भीड़ उस वीर
बालक
पृथ्वी सिंह
की जय-जयकार करने लगी ! अपने.. और शेर के
खून से
लथपथ पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से बाहर
निकला तो पिता ने
दौड़कर अपने पुत्र को छाती से
लगा लिया !
तो ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे..
जिनके मुख-
मंडल
वीरता के ओज़ से ओतप्रोत रहते थे !
और आज हम क्या बना रहे हैं
अपनी संतति को..
सारेगामा लिट्ल चैंप्स के नचनिये.. ?
आज समय फिर से मुड़ कर इतिहास के
उसी औरंगजेबी काल की ओर ताक रहा है..
हमें
चेतावनी देता हुआ सा.. कि ज़रुरत है
कि हिन्दू
अपने
बच्चों को फिर से वही हिन्दू संस्कार दें..
ताकि बक्त पड़ने
पर वो शेर से भी भिड़ जाये.. न कि “सुवरों”
की तरह
चिड़ियाघर के पालतू शेर के आगे भी हाथ पैर
जोड़ें.. !
जय श्री राम

Saturday, 3 January 2015

तोड़ दो


तोड़ दो उन गुलामी की जंजीरो को 
तोड़ दो उन रस्मो को जो अभी तक बनाये हुए है पंगु हमे
तोड़ दो वो सारे नियम जो हमसे हमारा जीवन छीने
हटा दो वो निषेध शब्द अब हिन्दुस्थान कई गलियारे से 
बदल दो इस देश को
मिटा वो उन लम्हों को जो याद दिलाये हमे गुलामी की
मिटा दो वो निशानिया जो दे गए ये गोरे अग्रेज
और बदल दो ये तखत और ताज इन काले अग्रेजो 
चूमो अपनी माटी को जिसके कण-कण मे बसा प्यार है 
याद करो उन सहीदो की क़ुरबानी जिन्होंने इसी प्यार के लिए दिए अपने प्राण है
जय हिन्द
By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Guar

आखिर कब....


कब तक लड़ते रहेगे हम अपने  आप से ?
कब तक जलते रहेगे हम इस आरक्षण की आग मे,
कब तक हम युही रहेगे खामोश ,
कब तक देखेगे ये बन्दर नाच ,
कब होगा ये युग परिवर्तन  और कब जागेगा स्वाभिमान
कब होगे पैदा आजाद भगत जैसे भारत माता के लाल 
कब होगी वो क्रांति जो लाये वापिस वो हिन्दुस्थान 
कब आयेगे मुस्कान उन मासूम से चेरहो पर
कब होगा उत्थान इस देश के युवाओ का 
कब जागेग ये भारत वर्ष आखिर कब.... 

By Admin:- Bhanwar Digvijay Singh Gaur

Mera Desh Ro Raha Hai