Shyari part-02

Thursday, 17 April 2014

हठीलो राजस्थान-37


ओडे चूँखै आंगली,
खेलै बालो खेल |
बिणजारी हाँकै बलद,
माथै ओडो मेल ||२२०||



बालक टोकरे में अपनी अंगुली चूसता हुआ खेल रहा है व उसकी माता (बिणजारी) टोकरे को सिर पर लिए हुए अपने बैलों हांकती हुई चली जा रही है |

देखो जोड़ी हेत री,
हित हन्दो बरताव |
इक मरतां बीजो मरै,
सारस रोज सभाव ||२२१||



परस्पर प्रेम में बंधी और नेह को निभानी यह सारस की जोड़ी कैसी अनूठी है कि जो एक के मरने पर दूसरा भी अपने प्राण त्याग देता है |
जाणी मोर न जगत में,
वाणी , रूप अनूप |
आई धरती ऊपरै,
सुन्दरता धर रूप ||२२२||




मोर ने कभी यह नहीं जाना कि उसकी वाणी और रूप संसार में दोनों ही अनुपम है | एसा लगता है ,जैसे सुन्दरता सदेह पृथ्वी पर अवतरित हुई है |

मालाणी घोडा भला,
पागल जैसाणेह |
मदवा नित बीकाण,
नारा नागाणेह ||२२३||



मालाणी प्रदेश के घोड़े श्रेष्ठ होते है तथा जैसलमेर के ऊंट | बीकानेर की गाय तथा नागौर के बैल श्रेष्ठ होते है |

बिन पाणी बाढ़े धरा,
पाणी धर तेलोह |
पाणी हिलै न पेटरो,
पाणी रो रेलोह ||२२४||



थली(मरुस्थल) का ऊंट रेगिस्तानी भूमि पर बिना पानी के ही जल के प्रवाह की तरह चलता हुआ धरती को पार करता रहता है व उसकी गति इतनी सुस्थिर होती है कि सवार के पेट का पानी भी नहीं हिलता |
डक डक नालियां बाजतां,
चालै मधरी चाल |
हवा न पूगै भगतां,
ताव पड़न्तां ताल ||२२५||




पैरों की हड्डियाँ के जोड़ों से डक-डक की आवाज करते हुए थली का ऊंट मंद गति से चलना पसंद करता है ,किन्तु समय की मांग का दबाव पड़ने पर इतनी तेज गति से दौड़ता है कि हवा भी उसे नहीं पहुँच सकती ||

हानै चमकै गोरबन्द,
पग नेवर झणकार |
पाछै झुमै कामिणी,
ओटी राग मलार ||२२६||


ऊंट के अगले भाग पर गोरबंद व पैरों में नेवर की झंकार हो रही है | ऊंट पर अगले होने में सवार बैठा मल्हार गा रहा है व पिछले हाने में बैठी उसकी पत्नी मस्ती से झूम रही है |

हठीलो राजस्थान-36



घुमै साथै रेवडां,

धारयां जोगी भेस |
गंगा जमुना एक पग,
बीजो मालब देस ||२१४||

राजस्थान के भेड़ बकरियों चराने वाले अपने रेवड़ों के साथ अकाल के समय कभी मालव प्रदेश में कभी गंगा यमुना के किनारे अपने पशुओं को चराने के लिए फिरते रहते है , क्या वे उन संतों के समान नहीं है जो कि गंगा यमुना के किनारे या मालव प्रदेश में नर्वदा के तट पर रहना पसंद करते है |


अन्न न देखै आँख सूँ,
सांड्या रो ही बास |
रेबारी पय-पान नित,
पलकै लोही मांस ||२१५||


अन्न जिन्हें आँखों से ही देखने को सुलभ नहीं है क्योंकि वे जंगल में ही निवास करते है | ऐसे रेबारी (ऊंट-पालक) ऊंटनियों का दूध पीकर ही रहते है जो इतना पोषक होता है कि उनकी (रेबारियों की) मांसपेसियां रक्त-वर्ण सी चमकीली होती है जिससे एसा प्रतीत होता है मानों खून मांस-पेशियों के ऊपर चमक रहा हो |

अबै नहीं हुक्का रह्या ,
रिया न चमड़ पोस |
नारेल्यां रहिया निपट,
चिलमां बीडी तोस ||२१६||




अब न तो हुक्का ही रहा है और न ही चमड़ पोस (चमड़े का हुक्का) व नारियल के हुक्के भी नहीं रहे | अब तो चिलम और बीडी से ही संतोष करना पड़ता है |


मुकलावै लाई घरां ,
बीत्या बरस पचास |
चरखो कातै आज दिन,
पीढ़े बैठी सास ||२१७||


पचास वर्ष पूर्व मुकलावे (गौने)के समय अपने साथ चरखा लाई थी | उसी चरखे से आज दिन तक सास पीढ़े पर बैठी सूत कात रही है |


तडकाऊ घट्टी फिरै,
गावै हरजस आप |
पीसै कामण नाज नित,
पीसै नित निज पाप ||२१८||


भोर में अपने हाथ से घट्टी (चक्की)फेरती हुई ग्राम्य-ललना हरजस (भजन)गाती है | यों अनाज पीसने के साथ मानों वह अपने पापो को भी पीस देती है |(अर्थात आत्म कल्याण कर लेती है)


दिवराणी पीसै घटी,
जेठाणी बीलोय |
नणद दुहारी नित करै,
देवर सींचै तोय ||२१९||


देवरानी चक्की पीसती है और जेठानी दही बीलो रही है | ननद दूध दुहती है तथा देवर पाणत (फसल में पानी देना) करता है

हठीलो राजस्थान-35


अमलां हेलो आवियौ,
कांधे बाल लियांह |
केरो केरो झाँकतो,
ढ़ेरी हाथ लियांह ||२०८||


जब अमल लेने के लिए आवाज हुई तो अमलदार (अफीमची) जिसके कन्धों तक बाल थे,अमल की ढ़ेरी हाथ में लिए टेढ़ा-टेढ़ा देखता हुआ पहुंचा |

लालां सेडो झर झरै,
अखियाँ गीड अमाप |
जीतोड़ा भोगै नरक,
अमली माणस आप ||२०९||


जिसके मुंह से लार टपकती रहती है,नाक से सेडा(गन्दा पानी) बहता रहता है और आँखों में अपार गीड भरे रहते है | एसा अमल का नशा करने वाला मनुष्य इस संसार में जिन्दा रहकर नरक ही भोग रहा है |

मीठा माथै मन रमै,
बेगो बावड़ीयोह |
बंदाणी जूवां चुगै,
तपतां ताबड़ीयोह ||२१०||


प्रतिदिन अमल खाने वाला (बंदाणी) धूप में बैठा अपने कपड़ों से जुएँ निकाल रहा है | नशा करने का समय नजदीक आता जा था व पास में अफीम नहीं था | इसलिए किसी को अमल लाने के लिए भेजता है व निर्देश देता है कि मुंह में मिठास आने लगा है (अर्थात नशा पूरी तरह उतरने वाला है)अत: तू अफीम लेकर के जल्दी आना |

कर लटकायाँ उरणियो,
कांधे दीवड डाल |
दलपत आगै हालियो,
एवड रो एवाल ||१२१||


हाथ में उरणिया (भेड़ का बच्चा) लटकाए हुए और काँधे पर दीवडी (चर्म से बना जल पात्र) डाले हुए रेवड़ के आगे-आगे गडरिया चल रहा है |

गल टोकर टण टण बजै,
सांपै रांभ सजीव |
अलगोजां री तान बिच,
उछरी छांग अजीब ||२१२||


पशुओं के गले में टोकरे टण-टण करते हुए बज रहे है | पशुओं के रंभाने की आवाजें गूंज रही है | अलगोजों की तान के बीच पशुओं का समूह अजीब चाल से चला आ रहा है |

बाजै घंटी देहरां,
गल ढ़ोरां गरलाय |
भव-सागर तैरावणी,
बेतरणी तैराय ||२१३||


मंदिरों में बजने वाली घंटी की आवाज जिस प्रकार वैतरणी नदी को पार करा देती है उसी प्रकार पशुओं के गले से बंधी घंटी की आवाज संसार-सागर से पार उतार देती है |(पशुपालन से अर्थ व्यवस्था व भगवान् के भजन से परलोक गमन की बाधाएं दूर होती है )

हठीलो राजस्थान-34


धर गोरी, गोरी खड़ो,
गोरी गाय चराय |
गोरी लाई चूरमो ,
गोरी रूप लजाय ||२०३||

रेगिस्तान की धवल भूमि पर गोर वर्ण का ग्वाल सफ़ेद गाय को चरा रहा | दोपहर होने पर उसकी सुन्दर पत्नी भोजन के लिए चूरमा लेकर आती है व ग्वाल के रूप को देखकर शरमा जाती है |

टाबर दीधो रोवतो,
सज दीधो सिणगार |
डाबर भरवा जल गई,
डाबर नैणी नार ||२०४||

उस श्रंगार सज्जित युवती ने अपने रोते हुए शिशु को परिवार की अन्य महिलाओं को सौंप दिया तथा वह डाबर नैणी (सुनयना) डाबर (छोटे जलाशय) में जल भरने चली गई |

रंग सुरंगी ओढ़नी ,
हिवडै मोत्यां हार |
पणीयारयां पाणी भरै,
गावै राग मलार ||२०५||

रंग बिरंगी सुन्दर ओढ़नियां पहने तथा छाती पर मोतियों का हार धारण किए पनिहारिनें मल्हार राग गाती हुई पानी भरने जाती है |

हाली झूमै मगन व्है,
गोरी , डोरी भूल |
रट सु लगावै रेण दिन ,
अ-रटज नाम फिजूल ||२०६||

अरट की ध्वनी में मस्त होकर किसान (हाली) बैल को हांके जा रहा है व उसकी पत्नी जो खेत में पानी (पाणत करना)दे रही है मस्ती में डोली लगाना (नाके मोड़ना) भूल जाती है | ऐसी मस्ती प्रदान करने वाली जिसकी रट (ध्वनी) है उसका नाम व्यर्थ में ही अ-रट रखा गया है |

मेह अँधेरी रातड़ी,
उतरादी आ फांफ |
पग कादै कर खांक में,
पाणत आवै जाफ ||२०७||

मेह-अँधेरी रात में उतर दिशा से भयंकर लहर चल रही है | ऐसे में किसान की पत्नी ठण्ड के मारे हाथों को बगल में दबा कर क्यारियों में कीचड़ में खड़ी पाणत(फसल में पानी देना) करने के बाद लौटकर आ रही है |

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