Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-23


दो-दो लंगर पाँव में,
माथै दो दो मोड़ |
दो दो खग धारण कियां,
रण- लाडो बेजोड़ ||१३६||


यह अनूठा शूरवीर जिसके पांवों में दो दो कड़े है, सिर पर दो दो सेहरे है व अपने दोनों हाथों में खड्ग धारण कर रखे है,वह युद्ध क्षेत्रों में लड़ता हुआ अदभुत दुल्हे के समान शोभायमान हो रहा है (दो सेहरे इसलिए कि वीर विवाह मंडप से सीधा रण-क्षेत्र में जाते समय अपनी भावी पत्नी का सेहरा भी स्मृति स्वरुप साथ ले जाता है) |

सिर बांधे दो सेहरा,
करां दोय करवार |
दीधा भड नै क्यूँ कहो,
सिर एक थूं करतार ||१३७||


उपरोक्त वीर के सम्बन्ध में कवि भगवान् से कहता है कि- इसने दो सेहरे बाँध रखे है,हाथों से दो तलवारें चला रहा है ,फिर तूने इसको एक ही मस्तक क्यों दिया ? |

सर कटियाँ रिपु काटणा,
निज वचनां अनुराग |
कोर अंगरखे पूंछणी,
म्यान करन्तां खाग ||१३८||


सच्चे शूरवीर अपने वचन की रक्षा करते हुए सर कटने पर के बाद भी शत्रु को काटते चले जाते है व अपनी रक्त रंजित तलवार से शत्रु को समाप्त कर उसे म्यान में रखने से पूर्व अंगरखे से साफ़ करते है |

कटियाँ पहलां कोड सूं,
गाथ सुनी निज आय |
जिण विध कवि जतावियो,
उण विध कटियो जाय ||१३९||


वीर कल्ला रायमलोत ने युद्ध-क्षेत्र में जाने से पूर्व कवि से कहा कि -आप मेरे लिए युद्ध का पूर्व वर्णन करो ,ताकि मैं उसी अनुसार युद्ध कर सकूँ |
और उसने कवि द्वारा अपने लिए वर्णित शौर्य गाथा चाव से सुनी और जैसे कवि ने उसके लिए युद्ध कौशल का वर्णन किया था,उस शूरवीर ने उसी भाँती असि-धारा का आलिंगन करते हुए वीर-गति प्राप्त की |

पट केसरिया मोड़ सिर,
छोड़ी जीवण आस |
सधवा विधवा भेस दो ,
भेज्या निज धण पास ||१४०||


रण-भूमि में सेहरा बाँध कर केसरिया करने वाले शूरवीर ने जीवन की आशा समाप्त हो जाने के पर,अपनी पत्नी के पास भिन्न प्रकार की दो पौशाकें भिजवाई -यह कहलाते हुए कि यदि सती होना चाहो तो तो सधवा तथा जीवित रहना चाहो तो विधवा वेश धारण करो |

सखी रंगावो चुन्दडी,
श्रीफल लावो साज |
पिव लीधो रण रो बरत,
कीधो मोसर आज ||१४१||


वीरांगना कहती है ,कि हे सखी ! मेरे लिए चुन्दडी रंगवाओ तथा श्रीफल थाल में सजाकर लाओ | क्योंकि मेरे प्रियतम ने आज रण में शाका करने का व्रत लिया है | मेरे लिए यह कैसा सुअवसर उपस्थित हुआ है | अर्थात मैं जौहर व्रत लेकर स्वर्ग का वरण करुँगी |

हठीलो राजस्थान-22


सिर देणों रण खेत में ,
स्याम धर्म हित चाह |
सुत देणों मुख मौत में ,
इण धर रुड़ी राह ||१३०||


रण-क्षेत्र में अपना मस्तक अर्पित करना,स्वामी का हमेशा हित चिंतन करना व अपने पुत्रों को भी स्वधर्म पालन के लिए मौत के मुंह में धकेल देना इस राजस्थान की पावन धरती की परम्परा रही है |

खग बावै भड एक हथ,
बिजै हथ निज माथ |
सिव धण पूछे पीव नै ,
किसो सराउं हाथ ||१३१||


योद्धा एक हाथ से तलवार बजा रहा है तथा दुसरे हाथ में उसका कटा हुआ मस्तक है | इस अदभुत दृश्य को देखकर पार्वती ने शिव से पूछा - हे प्रियतम ! कहो इनमे से किस हाथ को सराहा जाए ? |

सीस मंगायो सायाधण,
चिता चढ़ण एक साथ |
खग राखी निज हाथ में,
सिर भेज्यो चर हाथ ||१३२||


युद्ध में पति की मृत्यु सुनकर वीरांगना ने सहमरण हेतु उसका सिर मंगवाया | उधर युद्ध-क्षेत्र में पति जीवित था तथापि, अपनी वीर पत्नी का मनोरथ पूर्ण करने के हेतु उस वीर ने अपना मस्तक काट कर सेवक के साथ भेज दिया ||

फेरां सुणी पुकार जद,
धाडी धन ले जाय |
आधा फेरा इण धरा ,
आधा सुरगां खाय ||१३३ ||


उस वीर ने फेरे लेते हुए ही सुना कि दस्यु एक अबला का पशुधन बलात हरण कर ले जा रहे है | यह सुनते ही वह आधे फेरों के बीच ही उठ खड़ा हुआ और तथा पशुधन की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुआ | यों उस वीर ने आधे फेरे यहाँ व शेष स्वर्ग में पूरे किये |
सन्दर्भ कथा पढने के लिए यहाँ चटका लगाएं

हेलो चंवरी सांभल्यो,
कंवरी, बात बताय |
पंवरी काटी गाँठ चट,
चढियो भंवरी आय ||१३४||


जैसे ही वह वीर (पाबूजी ) विवाह मंडप में अपने विवाह हेतु बैठा था | उसी समय उन्होंने घोड़ी की हिनहिनाहट सुनी (हेलो) हिनहिनाहट का तात्पर्य समझकर विपत्ति के विषय में वधु (कंवरी)को बताया व गठ्जोड़े की गाँठ को तलवार से काटकर युद्ध के लिए घोड़ी पर जा चढ़ा |

इण ओसर परणी नहीं ,
अजको जुंझ्यो आय |
सखी सजावो साज सह,
सुरगां परणू जाय ||१३५ ||


शत्रु जूझने के लिए चढ़ आया | अत: इस अवसर तो विवाह सम्पूर्ण नहीं हो सका | हे सखी ! तुम सती होने का सब साज सजाओ ताकि मैं स्वर्ग में जाकर अपने पति का वरण कर लूँ |

हठीलो राजस्थान-21


अमर धरा री रीत आ,
अमर धरा अहसान |
लीधौ चमचौ दाल रो,
सिर दीधो रण-दान ||१२४||

इस वीर भूमि की कृतज्ञता प्रकाशन की यह अमर रीत रही है कि दल के एक चम्मच के बदले में यहाँ के वीरों ने युद्ध में अपना मस्तक कटा दिया ||

नकली गढ़ दीधो नहीं ,
बिना घोर घमसाण |
सिर टूटयां बिन किम फिरै,
असली गढ़ पर आण ||१२५||

यहाँ के वीरों ने बिना घमासान युद्ध किए नकली गढ़ भी शत्रु को नहीं दिया , फिर बिना मस्तक कटाए असली गढ़ शत्रु को भला कैसे सौंप सकते है |

रण भिडयो बिडदावतां,
सूरां नीति सार |
कटियाँ पाछै सिर हंसै,
बिडदातां इक वार ||१२६||

शूरवीरों के लिए नीति का सार यही है कि वह बिरुदावली सुनकर युद्ध में भिड़ जाता है और उसका कटा हुआ सिर भी अपनी कीर्ति का बखान सुनकर प्रसन्नता से पुलकित होने लगता है |

दलबल धावो बोलियौ,
अब लग फाटक सेस |
सिर फेंक्यो भड़ काट निज ,
पहलां दुर्ग प्रवेस ||१२७ ||

वीरों के दोनों दलों ने दुर्ग पर आक्रमण किया जब एक दल के सरदार को पता चला कि दूसरा दल अब फाटक तोड़कर दुर्ग में प्रवेश करने ही वाला है तो उसने अपना खुद का सिर काट कर दुर्ग में फेंक दिया ताकि वह उस प्रतिस्पर्धी दल से पहले दुर्ग में प्रवेश कर जाये |

बिंधियो जा निज आण बस,
गज माथै बण मोड़ |
सुरग दुरग परवेस सथ,
निज तन फाटक तोड़ ||१२८ ||

अपनी आन की खातिर उस वीर ने दुर्ग का फाटक तोड़ने के लिए फाटक पर लगे शूलों से अपना सीना अड़ाकर हाथी से टक्कर दिलवा अपना शरीर शूलों से बिंधवा लेता है और वीर गति को प्राप्त होता है इस प्रकार वह वीर गति को प्राप्त होने के सथ ही अपने शरीर से फाटक तोड़ने में सफल हो दुर्ग व स्वर्ग में एक साथ प्रवेश करता है |

नजर न पूगी उण जगां,
पड्यो न गोलो आय |
पावां सूं पहली घणो,
सिर पडियो गढ़ जाय ||१२९ ||

जब वीरो के एक दल ने दुर्ग का फाटक तोड़कर दुर्ग में प्रवेश किया परन्तु जब उनकी दृष्टि किले में पड़ी तो देखा कि किले में उनके पैर व दृष्टि पड़ने पहले ही चुण्डावत सरदार का सिर वहां पड़ा है जबकि उस वीर के सिर से पहले प्रतिस्पर्धी दल का दागा तो कोई गोला भी दुर्ग में नहीं पहुंचा था |

हठीलो राजस्थान-20


मुरछित सुभड़ भडक्कियो,
सिन्धु कान सुणीह |
जाणं उकलता तेल में,
पाणी बूंद पडिह ||१०३||

युद्ध में घावों से घायल हुआ व् अचेत योद्धा भी विरोतेजनी सिन्धु राग सुनते ही सहसा भड़क उठा,मानो खौलते तेल में पानी की बूंद पड़ गई हो |

बाजां मांगल बाजतां,
हेली हलचल काय |
कलपै जीवण कायरां,
सूरां समर सजाय ||१०४||

हे सखी ! रण के मंगल वाद्य बजते ही यह कैसी हलचल हो गई है ? स्पष्ट ही इसे सुन जहाँ कायरों का कलेजा कांप उठता है वहां शूरवीरों ने रण का साज सजा लिया है |

हेली धव हाकल सुणों,
टूट्या गढ़ तालाह |
खैंच खचाखच खग बहै,
लोही परनालाह ||१०५||

हे सखी ! मेरे वीर स्वामी की ललकार सुनों ,जिसके श्रवण मात्र से ही गढ़ के ताले टूट गए है | शत्रु दल में उनका खड्ग खचाखच चल रहा है ,जिससे रुधिर के नाले बहने लगे है |

आंथै नित आकास में,
राहू गरसै आज |
हिन्दू-रवि आंथ्यो नहीं,
तपियौ हेक समान ||१२१||

सूर्य भी प्रतिदिन आकाश में अस्त होता है व कभी कभी राहू-केतु से भी ग्रसित होता है ,लेकिन हिन्दुवा सूरज महाराणा प्रताप रूपी सूर्य कभी अस्त नहीं हुआ व जीवन पर्यंत एक समान तेजस्वी बना रहा |

घर घोड़ो, खग कामणी,
हियो हाथ निज मीत |
सेलां बाटी सेकणी,
स्याम धरम रण नीत ||१२२||

इसमें वीर पुरुष के लक्षण बताये गए है -
घोडा ही उसका घर है ,तलवार ही उसकी पत्नी है | हृदय और हाथ ही उसके मित्र है ,वह अश्वारूढ़ हुआ भालों की नोक से ही बाटी सेंकता है ,तथा स्वामी-धर्म को ही अपनी युद्ध-नीति समझता है |

जलम्यो केवल एक बर,
परणी एकज नार |
लडियो, मरियो कौल पर,
इक भड दो दो बार ||१२३ ||

उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया तथा एक ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ |
आईये आज परिचित होते है उस बांके वीर बल्लू चंपावत से जिसने एक बार वीर गति प्राप्त करने के बावजूद भी अपने दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध क्षेत्र में लौट आया और दुबारा लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की |

Mera Desh Ro Raha Hai