Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-9


धुण हिड़दै इक सांभली,
भणतां खुद भगवान |
राग सदा सत वाहिनी,
संदेसो सत -ग्यान ||५२||

हे सखी ! भगवान का भजन करते करते मुझे हृदय में स्वयं भगवान की एक धुन सुनाई देती है | उस ध्वनि से मेरे हृदय में,सत्य के कम्पन से उत्पन्न हुई एक अनुपम राग,अनुभव होती है व सत्य-ज्ञान का संदेश कानों में सुनाई देता है |

माई मां, निज मात रो,
जाणे भेद जहाण |
निज धरमा मरणो भलो ,
पर धरमां नित हांण ||५३||
सौतेली मां व अपनी जन्म दात्री मां में कितना अंतर होता है -इसे सारा संसार जानता है | ठीक एसा ही भेद स्व-धर्म और पर-धर्म में होता है | स्वधर्म के लिए मरना सदा ही श्रेयष्कर है, जबकि परधर्म सदा हानिकारक होता है |

सींचै रुधिर सजागणो,
सिर सूंपै मम सैण |
उण घर रही ज आज लग,
बोले आ धर बैण ||५४||
यह धरती कहती है कि जो जागृत रहकर मुझे रक्त से सींचते है और मेरे इंगित मात्र पर अपना सिर समर्पित कर देते है, उसी घर में मैं आज तक रही हूँ | अर्थात अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले वीरों के ही अधिकार में मैं रही हूँ |

रगतां न्हाती नित रहै,
साजै नित सिंणगार |
परणी सूं धरणी प्रबल,
नखराली आ नार ||५५||
यह धरती प्रतिदिन रक्त से स्नान करती है और प्रतिदिन नविन श्रंगार करती है | इस प्रकार यह धरती पत्नी से भी ज्यादा श्रंगार प्रिय व प्रबल है ||

इस माथै सती अमर,
सतियाँ में सिरताज |
बल परणी,धरणी बली,
एकला दिसै आज ||५६||
इस पृथ्वी पर सती अमर है | ऐसी सतियाँ में बल के साथ विवाह होने के कारण बलवती हुई यह धरती आज महान दिखती है |

उबड़ खाबड़ अटपटी,
उपजै थोड़ी आय |
मोल मुलायाँ नह मिलै,
सिर साटे मिल जाय ||५७||
उबड़-खाबड़,बेढंगी व कम उपजाऊ होते हुए भी यह धरती किसी मोल पर नहीं मिल सकती | परन्तु जो इसके अपने मस्तक का दान करते है उसको यह धरती अवश्य मिल जाती है | अर्थात राजस्थान की यह उबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि किसी मुद्रा से न

हठीलो राजस्थान-8


नैणा नाथ न निरखियौ,
परणी खांडै साथ |
बलती झाला वा रमी ,
रगड़े हन्दी रात ||४६||

उस वीरांगना ने अपनी आँखों से पति के कभी दर्शन नहीं किये ,क्योंकि विवाह के अवसर पर उसका पति युद्ध-क्षेत्र में चला गया था ,अत: पति की तलवार के साथ ही उसका विवाह हुआ था | युद्ध क्षेत्र में पति की वीर-गति का समाचार आने पर वही पत्नी,जिसके हाथों से हल्दी का रंग भी नहीं मिटा था ,अपने आप को अग्नि के समर्पित कर सती हो जाती है |

संग बल्तां लाड़ी बणे,
मांगल राग नकीब |
रण ठाडो लाडो सजै,
इण घर रीत अजीब ||४७||


चिता पर अपने वीर पति के शव के साथ सहगमन करते समय यहाँ की महिलाऐं दुल्हन का वेश धारण करती है व वीर युद्ध के लिए प्रस्थान हेतु दुल्हे का सा केसरिया वेश धारण करते है | इन दोनों अवसरों पर ही मंगल राग वाध्यों द्वारा बजाई जाती है | इस वीर भूमि का यही रिवाज है |

घर व्हाली धण सूं घणी,
धर चूमै पड़ खेत |
रगतां रंगे ओढ़णी,
रगतां बाँदै रेत ||४८||


वीरों की धरती अपनी पत्नी से भी अधिक प्यारी है | इसीलिए धराशायी होने पर वे धरती को ही चूमते है तथा अपने रक्त से उसकी मिटटी रूपी चुन्दडी को रंगते है व अपने रक्त रंजित शरीर के साथ मिट्टी को लपेट कर स्वर्ग में साथ ले जाते है |

भड पडियो रण-खेत में,
संचै पूँजी साथ |
राज सांधे निज रगत सूं,
पिण्ड- दान निज हाथ ||49||


वीर-योद्धा रण-क्षेत्र में धराशायी हो गया,किन्तु सत्य की संचित सम्पत्ति फिर भी उसके साथ है | इसीलिए किसी दुसरे को उसका पिंडदान कराने की आवश्यकता नहीं है | वह स्वयम ही अपने रक्त से भीगी हुई मिट्टी के पिण्ड बनाकर अपने ही हाथ से अपने लिए पिंडदान करता है |
(इतिहास में खंडेला के राजा केसरीसिंह द्वारा रण-भूमि में अपने रक्त से अपना पिंडदान करने का उदहारण मौजूद है राजा केसरीसिंह पर ज्यादा जानकारी जल्द ज्ञान दर्पण पर प्रस्तुत की जाएगी)



पग-पग तीरथ इण धरा ,
पग- पग संत समाध |
पग- पग देवल देहरा ,
रमता जोगी साध ||५०||


इस धरती पर स्थान-स्थान पर तीर्थ है,स्थान -स्थान पर संत-महात्माओं की समाधियाँ है ,स्थान-स्थान पर देवल और देवालय है तथा स्थान-स्थान पर यहाँ योगी और साधू महात्मा विचरण करते है |

कर भालो,करवाल कटि,
अदृस हय असवार |
इण धरती रै उपरै,
लड़ता नित जुंझार ||५१||


हाथ में भाला और कमर में तलवार बाँध कर तथा अश्व पर सवार होकर अदृश्य जुंझार इस धरती पर हमेशा लड़ते थे (युद्धरत रहते थे)

हठीलो राजस्थान -7


बौले सुरपत बैण यूँ ,
सुरपुर राखण सान |
सुरग बसाऊं आज सूं,
नान्हों सो रजथान ||४०||

सुर-पति इंद्र कहता है कि स्वर्ग की शान रखने के लिए आज से मैं यहाँ भी एक छोटा सा राजस्थान बसाऊंगा | (ताकि लोग स्वर्ग को भी वीर भूमि समझे )

दो दो मेला भरे,
पूजै दो दो ठौड़ |
सिर कटियो जिण ठौड़ पर ,
धड़ जुंझी जिण ठौड़ || ४१||


एक ही वीर की स्मृति में दो दो स्थानों पर मेले लगते है और दो स्थानों पर उनकी पूजा होती है | एक स्थान वह है ,जहाँ युद्ध में उस वीर का सिर कट कर भूमि पर गिरा तथा दूसरा स्थान वह है जहाँ सिर कटने के उपरांत उसकी धड़ (शरीर) लडती (जूझती)हुई धराशायी हुई | क्योंकि सिर कटने के बाद भी योद्धा का धड़ युद्ध करता हुआ कई मीलों तक आगे निकल जाता था |

मरत घुरावै ढोलडा,
गावै मंगल गीत |
अमलां महफल ओपणी,
इण धरती आ रीत ||४२||


यहाँ मरण को भी पर्व मानते हुए मृत्यु पर ढोल बजवाये जाते है एवं मंगल गीत गवाए जाते है | अमल-पान की महफ़िल होती है | इस वीर-भूमि की यही रीत है |

उण घर सुणिया गीतडा,
इण घर ढोल नगार |
उण घर परण त्युहार हो ,
इण घर मरण त्युंहार ||४३||


विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष के यहाँ मंगल गीत गाए जा रहे थे ,उसी समय युद्ध की सूचना मिलने पर वर के घर पर युद्ध के ढोल नगारे आदि रण-वाध्य बजने लगे | उधर परण-त्योंहार मनाया जा रहा था तो इधर मरण-त्योंहार की तैयारियां हो रही थी |

देवलियां पग पग खड़ी,
पग पग देव निवास |
भूलोड़ा इतिहास रौ,
गावै नित इतिहास ||४४||


राजस्थान में स्थान स्थान पर देवलियों के रूप में प्रस्तर के वीर स्मारक खड़े है और स्थान स्थान पर ही वीरों के देवालय है जो हमारे विस्मृत इतिहास का नित्य इतिहास गान करते है अर्थात विस्मृत इतिहास की स्मृति कराते है |

कुवांरी काठां चढ़े,
जुंझे सिर बिण जंग |
रीठ-पीठ देवै नहीं ,
इण धरती धण रंग ||४५||


किसी वीर को पति बनाने का संकल्प धारण कर लेने के बाद यदि उस वीर की युद्ध में मृत्यु हो जाय तो संकल्प करने वाली वह कुंवारी ही सती हो जाया करती थी तथा यहाँ के शूरवीर सिर कटने के बाद उपरांत भी युद्ध करते थे व युद्ध भूमि में पीठ नहीं दिखाते | ऐसी यह वीर-भूमि बारम्बार धन्य है |

हठीलो राजस्थान-6


छीन ठंडी छीन गरम है,
तुनक मिजाजी नेस |
भोली सूर सभाव री,
धरती दोस न लेस ||३४ ||

राजस्थान की भूमि क्षणभर में ठंडी व क्षण भर में गर्म हो जाती है | इसमें इस धरती का तनिक भी दोष नहीं है,और न ही यह स्थिर स्वभाव की द्योतक है बल्कि यह शूरवीर के भोले स्वभाव का प्रतीक गुण है |

निपजै नारी पद्मणी
घर घर वीरां खाण |
सारा देसां सूं सिरे ,
रेतीलो रजथान ||३५||


यहाँ घर-घर में पद्मिनी जैसी नारियां पैदा होती है व यहाँ का हर का प्रत्येक घर वीरों को उत्पन्न करने वाली खान है | इसीलिए यह राजस्थान प्रदेश सब प्रदेशों से श्रेष्ठ है |

धोला मन, धोली खगां,
धोला धोरां वान |
केव्या मुख कालो करै,
रोसंतां रजथान ||३६||


यहाँ उज्जवल मन और उज्जवल खड्ग धारण करने वाले वीर निवास करते है | यहाँ श्वेत बालू रेत के टीले भी उजले है | परन्तु राजस्थानी वीर क्रुद्ध होने पर शत्रुओं का मुंह काला कर देते है |

सूखा गिरवर, बन पवन,
सूखी सह नदियांह |
झरना झारै निस दिवस,
अरि धण री अखियांह ||३७||


इस प्रदेश के पर्वत,वन,पवन तथा समस्त नदियाँ सूखी है | किन्तु शत्रुओं की स्त्रियों की आँखों से दिन रात झरने बहते है अर्थात आंसू टपकते रहते है |

दिल कठोर कोमल बदन,
अदभुत रीत निभाय |
अरि रेलों सोखे उदर,
रेलों रुधिर बहाय ||३८||


राजस्थान की भूमि व यहाँ के वीरों का दिल कठोर व शरीर कोमल होता है | फिर भी यह अदभुत है कि अपने खून की नदी बहाकर यह दुश्मन की सेना के प्रवाह को अपने पेट में समाहित कर लेते है अर्थात नष्ट कर देते है |

सीतल गरम समीर इत,
नीचो,ऊँचो नीर |
रंगीला रजथान सूं ,
किम रुड़ो कस्मीर ? ||३९||


राजस्थान वैविध्य युक्त है | यहाँ कभी ठंडी तो कभी गर्म हवा चलती है तथा पानी भी कहीं उथला तो कहीं गहरा है | ऐसे में रंगीले (हर ऋतू में सुहावने)राजस्थान से कश्मीर (जहाँ सिर्फ शीतल पवन और भूमि की उपरी सतह पर पानी है)किस प्रकार श्रेष्ट कहा जा सकता है ?

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