Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-27


ठाणा लीलो ठणकियो,
सुण बैरी ललकार |
सुत धायो ले सैलड़ो,
धव खींची तरवार ||१६०||

शत्रु की ललकार सुन कर अस्तबल में बंधा हुआ घोडा भी हिनहिना उठा | उधर,वीर पुत्र अपना भाला लेकर (शत्रु पर आक्रमण करने) दौड़ा और उधर वीर-पति ने म्यान से तलवार सूंत ली |

पग चंगों लख पूत नै,
भीगौ काजल नैण |
करवालां पग काटियौ,
समझी मायड़ सैण ||१६१||

दुर्गादास राठौड़ की माता ने पुत्र के सुदृढ़ पैरों को (भागने में तेज) देखकर व्याकुल हो गई व उसकी आँखों में आंसू आ गए | यह देख वीर दुर्गादास ने तलवार से अपना पैर काट लिया | दुर्गादास ने एसा क्यों किया, माता इस इशारे को समझ गई |

गिधण डुलावै बीजणों,
समली सिर सहलाय |
पूत अच-पलो पौढियो,
पैडां थप्पी पाय ||१६२||

चंचल पुत्र युद्ध-क्षेत्र में लड़ता हुआ वीर गति को प्राप्त होकर निशंक हो शयन कर रहा है | युद्ध समाप्त होने के उपरांत गिद्धनी उड़कर उसके पास आती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानों वह अपने पंखों से वीर को पंखा झल रही है व सिर पर बैठी हुई चील उसके मस्तक को सहलाती प्रतीत होती है |

सुत जायो सत मासयो,
मां हरखी नह लेस |
बरस सातवें रण मुवो,
हरखी आज विसेस ||१६३||

मां के गर्भ से जब सतमासा पुत्र पैदा हुआ तो उसे रंच मात्र भी प्रसन्नता नहीं हुई किन्तु सात वर्ष का होने पर जब उसका पुत्र युद्ध क्षेत्र में युद्ध करता हुआ मारा गया तो उसे आज विशेष प्रसन्नता है |

कुण दुसमण इण देस रो,
कुण लीवी धर खोस |
नान्हों पूछै मात नै ,
बार बार कर रोस ||१६४||

नन्हां बालक क्रुद्ध होकर बार-बार मां से यही प्रश्न पूछता है कि- हे मां ! बता हमारे देश का शत्रु कौन है तथा किसने हमारी धरती छिनी है ? |

सुत छोटो खोटो घणों ,
बोलै निरभै बैण |
नाम चहै निज शत्रुवां,
कर कर राता नैण ||१६५||

यधपि पुत्र छोटा है और नटखट भी बहुत है किन्तु वह वीरों के से निर्भय वचन बोलता है | वह नित्य सरोष नेत्रों से रह-रह कर अपने बैरियों के नाम पूछता है ताकि उन्हें मारकर अपने पिता के बैर का बदला ले |

हठीलो राजस्थान-26



जौहर ढिग सुत आवियो,
माँ बोली कर प्रीत |
लड़णों मरणों मारणों,
रजवट रुड़ी रीत ? ||१५४||

जौहर में जलती हुई माँ के सम्मुख जब वीर पुत्र आया तो वह बड़े प्रेम से बोली - हे पुत्र ! युद्ध में लड़ना और मरना-मारना; यही राजपूतों की अनोखी परम्परा है ; इसे निवाहना |

बैरी लख घर बारणे,
करवा तीखी मार |
सुत मांगै निज मात सूं,
न्हांनी सी तरवार ||१५५||

शत्रु को अपने घर के दरवाजे पर आया हुआ जानकार उस पर तीक्षण प्रहार करने हेतु अल्प व्यस्क वीर पुत्र भी अपनी मां से नन्ही सी तलवार मांग रहा है |

रेत रमेकड़ नह रमूं ,
दादा दो दूनाल |
मामोसा मगवाय दो ,
तीखी सी तरवार ||१५६||

वीर बालक कहता है - मैं रेत में नहीं खेलूँगा | हे दादा जी ! मुझे तो आप दो नाल वाली बन्दुक मंगवा दो और मामाजी आप ! मुझे एक तीखी सी तलवार मंगवा दो |

अरि मारण आराण में,
धायो सह परिवार |
गीगो धायो गोर सूं ,
भीगो दूधां धार ||१५७||

शत्रु को मारने के लिए समस्त परिवार युद्ध-क्षेत्र की और चल पड़ा | उसको जाता देख कर क्षत्राणी के गोद का बच्चा भी युद्ध में जाने के लिए गोद से उछल पड़ा, बालक में ऐसे शौर्य को देखकर उसकी मां के स्तनों से दूध की धारा बह चली जिससे गोद का बालक भीग गया |

हठ करतो हाँचल पकड़,
लुक छिप खातो गार |
मायड़ फूलै देख मन,
उण हाथां तरवार ||१५८||

जो बालक कभी बालोचित चपलतावश मां का आँचल पकड़ कर हठ करता था तथा छुप-छुप कर मिटटी खाता था ,आज उसी बच्चे के हाथ में तलवार देखकर मां फूले नहीं समा रही |

दरवाजै मायड़ कटी ,
बापू टूका-टूक |
तिपडै सुत तंडुकियो,
बैरी टाक बन्दूक ||१५९||

द्वार पर युद्ध करती हुई माता ने वीर गति पाई और पिता के शरीर के भी टुकड़े टुकड़े हो गए | इस पर उसका वीर पुत्र तत्काल ललकारता हुआ निकला और शत्रु को अपनी बन्दूक का निशाना बना दिया |

हठीलो राजस्थान-25


भाज्यां भाकर लाजसी,
लाजै कुल री लाज |
सिर ऊँचौ अनमी सदा,
आबू लाजै आज ||१४८||

यदि मैं युद्ध क्षेत्र से पलायन करूँ तो गौरव से ही जो ऊँचे हुए है वे पर्वत भी लज्जित होंगे व साथ ही मेरी कुल मर्यादा भी लज्जित होगी | यही नहीं,सदा गौरव से जिसका मस्तक ऊँचा रहा है एसा आबू पर्वत भी मेरे पलायन को देखकर लज्जित होगा |

रण चालू सुत भागियौ,
घावां लथपथ थाय |
मायड़ हाँचल बाढीया,
धण चूड़ो चटकाय ||१४९||

रण-क्षेत्र से घावों से घायल होकर भाग आए अपने पुत्र को देखकर वीर-माता ने लज्जित हो अपने स्तन काट डाले ,तथा उसकी वीर पत्नी ने अपनी चूडियाँ चटक (तोड़) दी |

भाजण पूत बुलावियो,
दूध दिखावण पाण |
छोड़ी हाँचल धार इक,
भाट गयो पाखाण ||१५०||

युद्ध क्षेत्र से भागने वाले अपने पुत्र को माता ने अपने दूध का पराक्रम दिखाने के लिए बुलाया और अपने स्तनों से दूध की धार पत्थर पर छोड़ी तो वह भी फट गया |

जण मत जोड़ो जगत में,
दीन-हीन अपहाज |
जोधा भड जुंझार जण,
करज चुकावण काज ||१५१||

हे माता ! तू जगत में दीन-हीन और विकलांग संतानों को जन्म मत दे | यदि जन्म देना ही है तो वीर योद्धाओं को,सिर कटने के बाद भी लड़ने वालों को जो तेरे मातृत्व के ऋण को चूका सके |

गोरी पूजै तप करै,
वर मांगे नित बाल |
बेटो सूर सिरोमणि,
बेटी बंस उजाल ||१५२||

वीर ललना गौरी की अर्चना और तप करती हुई नित्य यही वरदान मांगती है कि उसका बेटा शूरों में शिरोमणि हो तथा उसकी पुत्री वंश को उज्जवल करने वाले हो |

नह पूछै गिरहा दशा,
पूछै नह सुत बाण |
मां पूछै ओ व्यास जी,
अडसी कद आ रांण ||१५३||

वीरांगना ज्योतिषी से न तो ग्रह-दशा के बारे में पूछती है न पुत्र की आदतों के बारे में , बल्कि वह तो यही पूछती है कि हे व्यास जी ! मेरा पुत्र रण-भूमि में शत्रुओं से कब भिड़ेगा ? |

स्व.आयुवानसिंह शेखावत

हठीलो राजस्थान-24



रण तज घव चांटो करै,
झेली झाटी एम ||
डाटी दे , धण सिर दियो,
काटी बेडी प्रेम ||१४२||

कायर पति रण-क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ | इस पर उसकी वीर पत्नी ने उसे घर में न घुसने देने के लिए किवाड़ बंद कर दिए तथा पहले तो पति को कायरता के लिए धिक्कारा व बाद में अपना सिर काट कर पति को दे दिया | इस प्रकार उस कायर पति के साथ जो प्रेम की बेड़ियाँ पड़ी हुई थी उनको उस वीरांगना ने हमेशा के लिए काट दिया |

रण लाडो बण भड खडो,
सह गण भेज्या ईस |
रिपु धण भेजी राखडी,
निज धण भेज्यो सीस ||१४३||

युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए शूरवीर दुल्हे के समान सज कर खड़ा हुआ है | भगवान शिव ने अपने समस्त गणों को उसका युद्ध कौशल देखने के लिए भेजा | शत्रु की पत्नी ने उसे मोह पाश में फंसाने के उद्देश्य से मंगल सूत्र भेजा | और उसकी खुद की पत्नी ने पति को मोह पाश से मुक्त करने के लिए अपना सिर काट कर पति के पास के भिजवा दिया |

काटण मारग अरि कटक,
खाटक खडियो खेंट |
हाटक थालां रींझ धण,
भेज्यो माथो भेंट ||१४४||

शत्रु की सेना को अपनी तलवार से चीरते हुए उस वीर ने उसी के बीच अपना मार्ग बना लिया | उसकी इस अदभुत वीरता पर रींझकर वीरांगना (पत्नी) ने अपना मस्तक काटकर सोने के थाल में उसके पास भेंट स्वरुप भेज दिया |

बाँधी पाल कुल काण री,
प्रण बांध्यो ,मन टीस |
सिर बांध्यो जस सेहरो,
उर बंध्यो धण सीस ||१४५||

शूरवीर कुल मर्यादा की परम्परा को रक्षित कर ऐसे शोभायमान हो रहा था जैसे सिर पर सेहरा बाँध रखा हो | कर्तव्य पालन के लिए हृदय में उत्पन्न होने वाली पीड़ा व उसकी दृढ प्रतिज्ञा ऐसे शोभायमान हो रही थी जैसे उसने अपनी पत्नी के काट कर दिए हुए मस्तक को बाँध कर हृदय पर लटका लिया हो |

मुण्ड कट्यां भी रुण्ड लडै,
खग बावै कर रीस |
मग्ग दिखावै मोड़ सूँ,
उर बंधियो धण-सीस ||१४६||

मस्तक कट जाने के बाद भी उस वीर का कबंध क्रुद्ध होकर तलवार बजा रहा है | उसकी वीर पत्नी का कटा हुआ मस्तक ,जो उसने गले में बाँध रखा है ,उसे चाव से मार्ग दिखाता जा रहा है |

हूँ लाजूं रण भाजता,
लाजै इण धर माथ |
चूड़ो धण ,पय मात रो,
लाजै हेकण साथ ||१४७||

युद्ध क्षेत्र से भागने पर न केवल मैं लज्जित होता हूँ बल्कि इस धरती का मस्तक भी लज्जा से झुक जाता है | इतना ही नहीं ,पत्नी का चूड़ा व माता का दूध भी एक साथ लज्जित होता है

Mera Desh Ro Raha Hai