Shyari part-02

Saturday, 12 April 2014

हठीलो राजस्थान-5


मात सुणावै बालगां,
खौफ़नाक रण-गाथ |
काबुल भूली नह अजै,
ओ खांडो, ऎ हाथ ||२८||

काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किये गए प्रचंड खड्ग प्रहारों को नहीं भूल सकी है | उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों को आज भी डराकर सुलाती है |

संत सती अर सायबा,
जणियां दाता सूर |
जण-जण नाऩ्हां जीव आ,
नथी गमायो नूर ||२९||


इस भूमि ने सदा ही संतो,सतियों और वीर स्वामियों ,दाताओं तथा शूरवीरों को जन्म दिया है | यहाँ की वीर ललनाओं ने तुच्छ प्राणियों (कायर,कपटी और कपूतों) को जन्म देकर अपने रूप यौवन को नष्ट नहीं किया |

जाणै इटली फ़्रांस रा,
जरमन, तुरक , जपान |
रण मतवाला इण धरा,
रण बंको रजथान ||३०||


आज फ़्रांस ,जर्मनी ,तुर्की व जापान के लोग इस तथ्य से भली भांति परिचित हो चुके है कि राजस्थान में युद्ध के लिए आतुर रहने वाले प्रचंड-वीर निवास करते है व राजस्थान विकट युद्ध करने वालों की भूमि है |

रेती धरती विकट भड,
रण-टणका सदियांह |
हिम-गिर यूं साखी भरै,
सन्देसो नदियांह ||३१||


बालुका-मयी इस भूमि पर शताब्दियों से रण-भूमि में बलवान विकट योद्धा उत्पन्न होते है | इस बात की हिमालय भी साक्षी देता है और नदियाँ भी यही सन्देश गान करती है |

किम पडौस कायर बसै,
केम बसै घर आय |
पाणी,रजकण,पवन सह,
वीरा रस बरसाय ||३२||


इस धरती के पडौस में कायर पुरुष कैसे निवास कर सकते है और इस पर आकर तो वे बस ही कैसे सकते है ? क्योंकि यहाँ का पानी,मिटटी और हवा वीर रस की वर्षा करने वाले है अर्थात वीरों को उत्पन्न और पोषित करने वाले है |

लिखियो मिलसी लेख में,
विधना घर नित न्याय |
घर खेती किम नीपजै ?
रण-खेती सरसाय ||३३||


प्रराब्द में जो लिखा होता है ,वही मिलता है | विधाता के घर में सदा न्याय ही होता है यहाँ की भूमि पर खेती कैसे पनप सकती है ? क्योंकि यहाँ की वीर भूमि में तो रण-खेती है |
by:-aadarniy aayuwan singh ji hudeel

हठीलो राजस्थान-4


रण छकियो, छकियो नहीं ,
मदिरा पान विशेष |
रण-मद छकियो रीझ सूं,
रण-मतवालो देस ||२२||

रण से तृप्त होने वाला यह देश अत्यधिक मदिरा पान करने पर भी तृप्त नहीं हो सका किन्तु जब उसने उल्लासित होकर रण-रूपी मदिरा का सेवन किया ,तभी जाकर तृप्त हुआ क्योंकि यह सदैव ही रण-रूपी मदिरा से मस्त होने वाला है |

सह देसां सूरा हुआ,
लड़िया जोर हमेस |
सिर कटियाँ लड़णों सखी,
इण धर रीत विसेस ||२३||


हे सखी ! सभी देशों में शूरवीर हुए है ,जो सदैव बड़ी वीरता से लड़े है,किन्तु सिर कटने के उपरान्त भी युद्ध करना तो केवल इस देश की ही विशेष परम्परा रही है |

खाणी रोटी घास री,
पेडा गालां बास |
रगतां लिखियो अमिट नित,
इण धरती इतिहास ||२४||


घास की रोटी खाने वाले, पेडों के नीचे और् कन्दराओं मे निवास करने वाले वीरों ने सदैव ही इस धरती के इतिहास को रक्त से अमिट अक्षरों मे लिखा है |

धर कागज,खग लेखणी,
रगतां स्याही खास |
कमधां लिखियो कोड सूं,
अमिट धरा इतिहास ||२५||


धरती रुपी कागज पर तलवार रुपी लेखनी से रक्त की विषेश स्याही से कमधों (सिर कटने के बाद भी लडने वाले वीरों) ने बडे चाव से इस भूमि का अमिट इतिहास लिखा है |

धोरां घाट्यां ताल रो,
आंटीलो इतिहास |
गांव गांव थरमापली,
घर घर ल्यूनीडास ||२६||


यहां के रेतिले टीलों,यहां की घाटियों और मैदानों का बडा ही गर्व पुरित इतिहास रहा है |यहां का प्रत्येक गांव थरमापल्ली जैसी प्रचण्ड युद्ध स्थली है तथा प्रत्येक घर मे ल्यूनीडास जैसा प्रचण्ड योद्धा जन्म चुका है |

सुलग अगन सुजसां तणी,
सुलगै नित रण-आग |
सदियां सूं देखां सखी ,
सिर अनामी कर खाग ||२७||


यहां के वीरों के ह्रदय मे सदैव सुयश कमाने की अग्नि प्रज्वलित रहती है इसिलिये यहां सदा युद्धाग्नि प्रज्वलित रहती है | हे सखी ! हम तो सदियों से यही देखती आई है कि यहां के वीरों के सिर सदा अनमी (न झुकने वाले)रहे है ,तथा उनके हाथों मे खड्ग शोभित रहा है |

Friday, 11 April 2014

हठीलो राजस्थान -3


खल खंडण,मंडण सुजण,
परम वीर परचंड |
तो भुज -दंडा उपरे,
भारत करै घमण्ड ||१६||

दुष्टों का नाश और सज्जनों का पालन करने वाले यहाँ के वीर अत्यंत प्रचंड है ; जिनके भुज-दण्डो पर भारत को गर्व है|

भारथ कर भारत रंग्यो,
कण-कण भारत काज |
राखी भारत लाज नित,
अंजसे भारत आज ||१७||


यहाँ के वीरों ने भारत -भूमि की रक्षा के लिए प्रचंड युद्ध करके भारत-भूमि के कण-कण को रक्त-रंजित कर दिया | उन्होंने सदैव भारत की लाज रखी,जिस पर आज भी देश गर्व करता है |

मत कर मोद रिसावणों,
मत मांगे रण मोल |
तो सिर बज्जे आज लौ ,
दिल्ली हन्दा ढोल ||१८||


हे राजस्थान ! तू अपनी वीरता पर गर्व मत कर ,रुष्ट भी मत हो और न रण भूमि में लड़ने के लिए प्रतिकार के रूप में किसी प्रकार के मूल्य की ही कामना कर | क्योंकि आज तक दिल्ली की रक्षा के लिए आयोजित युद्धों के नक्कारे तेरे ही बल-बूते बजते रहे है |

हरवल रह नित भेजणा,
चुण माथा हरमाल |
बाजै नित इण देश रा,
तो माथै त्रम्बाल ||१९||


तुने सदैव युद्ध-भूमि में रहकर भगवान् शिव की मुंड-माला के लिए चुन-चुन कर शत्रुओं के शीश भेजे है | तेरे बाहू-बल के भरोसे ही इस देश के रण-वाध्य बजते आये है |

पान फूल चाढ़े जगत,
अमल धतुरा ईस |
थुं भेजे हरमाल हित,
चुण-चुण सूरां सीस ||२०||


संसार भगवान शंकर को पत्र-पुष्प तथा अफीम-धतूरे आदि की भेंट चढ़ाता है ,किन्तु हे राजस्थान ! तूं तो उनकी मुंड-माला के किये चुन-चुन कर शूरवीरों के शीश समर्पित करता है |

हिंद पीछाणों आप बल,
करो घोर घमसाण |
बिण माथै रण मांडणों ,
हरबल में रजथान ||२१||


हे भारत ! तुम अपनी शक्ति की स्वयं पहचान करो व घमासान युद्ध में जुट जाओ | तुम क्यों डरते हो ? सिर कटने पर भी भयंकर संग्राम करने वाले वीरों का देश राजस्थान आज युद्ध-भूमि में अग्रिम पंक्ति (हरावल) में जो है |

हठीलो राजस्थान -२


बहु धिन भाग वसुन्धरा,
धिन धिन इणरो तन्न |
दुरगा लिछमी सुरसती ,
तिन्युं जठै प्रसन्न ||१०||

इस वसुन्धरा(राजस्थान)का भाग्य धन्य है,और इसका शरीर भी धन्य है,क्योंकि इस पर दुर्गा,लक्ष्मी और सरस्वती तीनों देवियाँ प्रसन्न है |(यहाँ पर वीरों की अधिकता से शौर्य की देवी दुर्गा की प्रसन्नता,धनवानों की अधिकता से धन की देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता और विद्वानों की अधिकता के कारण विद्या की देवी सरस्वती की प्रसन्नता का भान होता है |

केसर निपजै न अठै,
नह हीरा निकलन्त |
सिर कटिया खग झालणा,
इण धरती उपजंत || ११||


यहाँ केसर नहीं निपजती,और न ही यहाँ हीरे निकलते है | वरन यहाँ तो सिर कटने के बाद भी तलवार चलाने वाले वीर उत्पन्न होते है |

सोनो निसरै नह सखी ,
नाज नहीं निपजन्त |
बटक उडावण बैरियां,
इण धरती उपजंत ||१२||


हे सखी ! यहाँ सोना नहीं निकलता;और न ही यहाँ अनाज उत्पन्न होता है | यहाँ पर तो शत्रुओं के टुकड़े-टुकड़े करने वाले वीर-पुत्र उत्पन्न होते है |

नर बंका,बंकी धरा,
बंका गढ़ , गिर नाल |
अरि बंका,सीधा करै,
ले बंकी करवाल ||१३||


राजस्थान के पुरुष वीर है,यहाँ की धरती भी वीरता से ओत-प्रोत है,दुर्ग,पहाड़ और नदी-नाले भी वीरता प्रेरक है | हाथ में बांकी तलवार धारण कर यहाँ के वीर रण-बाँकुरे शत्रुओं को भी सीधा कर देते है |

जुंझारा हर झूपड़ी,
हर घर सतियाँ आण |
हर वाटी माटी रंगी ,
हर घाटी घमसाण ||१४||


यहाँ पर प्रत्येक झोंपड़ी में झुंझार हो गए है,हर घर सतियों की आन से गौरान्वित है ,प्रत्येक भू-खंड की मिटटी बलिदान के रक्त से रंजित है ,तथा हर घाटी रण-स्थली रही है |

हर ढाणी,हर गांव में ,
बल बंका, रण बंक |
भुजां भरोसै इण धरा,
दिल्ली आज निसंक ||१५||


यहाँ हर ढाणी और हर गांव गांव में बल बांके और रण-बांके वीर निवास करते है | जिनके भुज-बल के भरोसे दिल्ली (देश की राजधानी) निस्शंक (सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त )है|

Mera Desh Ro Raha Hai