Shyari part-02

Friday, 11 April 2014

हठीलो राजस्थान -1

दीधा निज गुण देवता,
रिखियां दी आसीस |
जिण दिन सिरजी मरुधरा,
सोणी नायो सीस ||||


जिस दिन विधाता ने इस मरुधरा (राजस्थान)का सृजन किया ,उस दिन देवताओं ने उसे अपने गुण प्रदान किये तथा ऋषियों ने आशीर्वाद दिया एवं पृथ्वी ने अपना शीश झुकाया


धरमराज दीधो धरम,
भिखम प्रण बलवान |
विष्णु खमा शिव रोस निज ,
सुरसत वाणी दान ||||



धर्मराज युधिष्टर ने इस राजस्थान में धर्म को व भीष्म पितामह ने दृढ-प्रण-पालन को स्थापित किया | विष्णु ने क्षमा,शिव ने अपना रोष व सरस्वती ने इसे वक्तत्व की क्षमता प्रदान की |


सूरज दीधो तेज सह,
धनपत धन गुणरास |
सतियाँ मिल सतवान की,
रजरूडी रज वास ||||


सूर्य ने इसे अपना तेज देकर तेजस्वी व धनपति धनकुबेर ने इसे धन व गुणों का भण्डार प्रदान किया | सतियाँ ने मिलकर यहाँ सत्य धर्म की स्थापना की | इन गुणों का विकास व पालन ही इस राजस्थान की परम्परा है |

अरजण दिधि वीरता,
माधव नीती मन्त्र |
पवन तनय बल आपियो ,
द्रोण दियो रण- तंत्र ||||


अर्जुन ने इस वीर भूमि को वीरता प्रदान की तो श्री कृष्ण ने इसे नीती का मन्त्र दिया | पवन-सुत हनुमान ने इसे अतुल बल-पराक्रम प्रदान किया तो द्रोणाचार्य ने रण नीती का पाठ पढ़ाया |

दीधी करण सुदानता,
दुरजोधन निज आण |
सीतापत सूं सीखली,
कुळ मरजादा कांण ||||


कर्ण ने इसे अपनी दानशीलता तथा दुर्योधन ने आन पर मर मिटने की शिक्षा दी | सीतापति भगवान राम से इसने अपने कुल की मर्यादा की सीमा का ज्ञान सिख लिया |

जबरन धाड़ो दौड़ता,
दिसै ना कुछ दोस |
सुरबाला रो रूप सह,
लीधो इण धर खोस ||||


वीर धर्म के अंतर्गत बल-प्रयोग द्वारा बलवान और सम्पन्न पर डाका डालने में एक भी दोष नहीं दिखाई देता है | इसी सिधान्तानुसार इस राजस्थान ने सुर-ललनाओं के समस्त रूप को डाका डालकर छीन लिया |

दीधा न जो देवता,
लुठा पण ही लीन |
इन्दर भाग्यो आंतरै,
अब लग बिरखाहीन ||||


देवताओं ने जो इसे नहीं दिया ,उसे यहाँ के वीरपुत्रों ने अपने भुज-बल से बलपूर्वक ले लिया | इससे भयभीत होकर देवताओं का राजा इंद्र कहीं दूर भाग गया था | यही कारण है कि इस धरती पर आज तक वर्षा क्षीण होती है |

सुरसत आवै इण धरा ,
हंस भलां असवार |
इक हाथ वीणा बाजणी,
बीजै हथ तरवार ||||


हे सरस्वती ! आप इस धरा पर अपने वाहन हंस पर आरूढ़ होकर आयें | आपके एक हाथ में भले ही वीणा हो ,परन्तु दुसरे हाथ में तलवार अवश्य होनी चाहिए | (क्योंकि इस वीर भूमि में आपका अवतरण बिना तलवार के शोभा नहीं देगा) |

नम-नम नाऊँ माथ नित,
सुरसत दुरगा माय |
दोन्यू देव्यां मेल इत,
सोनो गंध सुहाय ||||


मैं नित माँ शारदा और दुर्गा के बारम्बार मस्तक नवाता हूँ | यहाँ इन दोनों ही देवियों में परस्पर अटूट प्रेम रहा है ,जो मानों सोने में सुगंध के समान है | (यहाँ विद्या और वीरता का मणि -कांचन संयोग रहा है) 


श्री क्षत्रिय युवक संघ के अग्रणी नेताओं में से एक स्व.आयुवान सिंह जी शेखावत ने अपनी कलम से कई पुस्तकों के साथ "हठीलो राजस्थान " नामक पुस्तक में ३६० दोहों का एक संग्रह लिखा | हालाँकि उनके दोहों की भाषा कठिन नहीं थी फिर भी आज के पढ़े लिखे लोगों के लिए राजस्थानी भाषा अपनी होते हुए भी परायी सी हो गयी अत: आयुवान सिंह समृति संस्थान ने उनके दोहों का संग्रह डा.नारायण सिंह जी भाटी,डा.शम्भूसिंह जी मनोहर,श्री रघुनाथ सिंह जी कालीपहाड़ी के सहयोग से हिंदी अनुवाद भी साथ में प्रकाशित किया |


Saturday, 7 September 2013

इतिहास याद दिलाये


इतिहास याद दिलाये मेवाड़ी जयमल पत्ता की !
मेवाड़ी जयमल पत्ता की ! जागो ! जागो !!

जली रानियाँ जौहर व्रत ले , अंगारों से खेली थी अंगारों से खेली |
शान बेचकर कायर की भांति अश्रु धारा ले ली अब अश्रु धारा ले ली ||

भूल गया क्यों भोले तलवार राणा सांगा की !
तलवार राणा सांगा की ! जागो ! जागो !!

केशरिया बन जूझ गए हमको गौरव देने , हाँ हमको गौरव देने |
रखते क्यों नहीं प्राण ह्रदय में उनकी पीडा लेने रे उनकी पीडा लेने ||

आई प्रलय की बेला , है मांग गोरा बादल की !
है मांग गोरा बादल की जागो ! जागो !!

यहाँ घास की रोटी से वैभव ने हार मानी वैभव ने हार मानी |
इस धरती से गूंज रही जीवन की अमर कहानी - जीवन की अमर कहानी ||

वह थाती न गुमाना , महान हल्दी घाटी की !
महान हल्दी घाटी की जागो ! जागो !!

चढा नहीं पूजा में तो पैरों से कुचलेंगे -हाँ पैरों से कुचलेंगे |
कल जो कुचले गए आज फिर तुमसे बदला लेंगे - वे तुमसे बदला लेंगे ||

बिता युग है कोस रहा , धिक्कार ऐसे जीने को |
धिक्कार ऐसे जीने को जागो ! जागो !!


श्री अर्जुन सिंह व कैलाशपाल सिंह द्वारा २४ दिसम्बर १९५८ को रचित |

Friday, 6 September 2013

साथी संभल-संभल कर चलना


साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा |
है अँधियारा पर प्राची में झांक रहा सवेरा ||
बलिवेदी का अंगारा तू जीवन ज्योति जला दे | जीवन ...
लम्बी मंजिल बढ़ता जा होनी से कदम मिला ले , होनी से ...
गौरव से जीने मरने की बढ़ने की यह परम्परा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

साधन कम है फिर भी तुम पर आशाएं हमारी आशाएं , आशाएं ...
कर्म कठिन है कोमल काया अग्नि परीक्षा तुम्हारी , अग्नि परीक्षा ...
भुला पंथी भटक रहा तू बन जा रे ध्रुवतारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

यह जीवन न्योछावर करके क्या संतोष करेगा | क्या ..
जन्म जन्म का कर्जा कैसे एक जन्म में चुकेगा , एक जन्म ...
लहरों से हरो मत साथी दूर नहीं है किनारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

शमां जली है परवानों की आई है ऋतू मरने की , आई ...
मरने की या अरमानो की साथी पूरा करने की , साथी ...
करने की बेला में अच्छा लगता नहीं बसेरा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

जौहर शाको की कीमत को आज चुका बलिदान से , आज ..
दोल उठेंगे दिग्गज साथी तेरे महाप्रयाण से , तेरे ............
अरमानो को बना न देना आंसुओं की धारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

श्री शिव बख्श सिंह , चुई : १ अप्रेल १९५९ :;

इतिहास की चोटों का


इतिहास की चोटों का एक दाग लिए फिरते है |
सीने के घराने में इक दर्द लिए फिरते है ||

हम भूल नही सकते महमूद तेरी गजनी |
अब तक भी आंखों में वह खून लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||

बाबर तेरे प्याले टूटे बता कितने ?
पर सरहदी का अफ़सोस लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||

झाला था इक माना कुरम था इक माना |
सोने के लगे जंग पै अचरज लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||

कर्जन तेरी दिल्ली में अनमी था इक राना |
सड़कों पे गिरे ताजों के रत्न चुगा फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||

आपस में लड़े भाई गैरों ने हमें कुचला |
अब मिलकर लड़ने का अरमान लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||

Mera Desh Ro Raha Hai