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Wednesday, 4 September 2013

लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...

माँ तुम्हारा लाडला रण
मेंअभी घायल हुआ है...
पर देख उसकी वीरता को, शत्रु
भी कायल हुआ
है...
लग रहा है सिंहनी के कोख
सेपैदा हुआ हूँ...
रक्त की होली रचा कर, मैं
प्रलयंकारी दिख
रहा हूँ ...
माँ उसी शोणित से तुमको,
पत्र अंतिम लिख
रहा हूँ...
युद्ध भीषण था, मगर ना इंच
भी पीछेहटा हूँ..
माँ तुम्हारी थी शपथ, मैं आज
इंचोमें कटा हूँ...
एक गोली वक्ष पर कुछ देर पहले
ही लगी है...
माँ, कसम दी थी जो तुमने,
आजमैंनेपूर्ण की है...
छा रहा है सामने लो आँखों के
आगे अँधेरा...
पर उसी में दिख रहा है, वह मुझे
नूतन सवेरा...
कह रहे हैं शत्रु भी, मैं जिस तरह
सोया हुआ हूँ...
लग रहा है सिंहनी के कोख
सेपैदा हुआ हूँ...
यह ना सोचो माँ की मैं चिर-
नींद लेने
जा रहा हूँ ...
माँ, तुम्हारी कोख से फिर
जन्म लेने आ रहा हूँ...
पिता से---मैं तुम्हे बचपन में पहले
ही बहुत दुःख
दे चुका हूँ...
और कंधो पर खड़ा हो,
आसमां सर ले चुका हूँ.
लग रहा है सिंहनी के कोख
सेपैदा हुआ हूँ...

Jai kshatriya Dharm


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